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९० : अपभ्रंश कथाकाव्य एवं हिन्दी प्रेमाख्यानक
देखकर मोहित हो गई। घर पहुँचकर उसने उसे भोजन पर बुलाया और हार की चोरी लगाकर उसे बन्दी बना लिया ।
कंवलावती के सौन्दर्य पर मुग्ध हो सोहिल नाम के राजा ने सागरगढ़ पर आक्रमण कर दिया। सुजान ने अपने पराक्रम से उसे परास्त कर दिया। उसने कंवलावती से परिणय कर लिया। परन्तु यह निश्चय किया कि चित्रावली के मिलने तक वह संयम से रहेगा । वह राजकुमारी के साथ गिरनार-यात्रा पर निकला। संयोग से चित्रावली ने जो योगी भेजा. था वह भी गिरनार पहुंचा। राजकुमार का संदेश लेकर वह चित्रावली के पास लौट गया। पुनः योगी के वेश में वह राजकुमारी का एक पत्र लेकर सागरगढ़ आया और राजकुमार को अपने साथ रूपनगर ले गया । कथक द्वारा सोहिल के युद्ध की गाथा सुनकर राजा को चित्रावली के. विवाह को चिन्ता हुई । उसने चारों दिशाओं में राजकुमारों के चित्र लाने को चार चित्रकार भेज दिये। सुजान के पास जो दूत राजकुमारी ने भेजा उसकी सूचना रानी को मिल गई । वह सुजान को रास्ते में बैठाकर नगर में आ रहा था कि बन्दी बना लिया गया । इससे विलम्ब हआ और राजकुमार पागल की तरह चित्रावली का नाम ले-लेकर पुकारने लगा। राजा ने उसका वध करने को एक हाथी भेजा जिसे उसने मार डाला। राजा स्वयं उसे मारने को उद्यत हआ कि चित्रकार ने सुजान का चित्र दिया और बताया कि इसी ने सोहिल को मारा था। राजा ने चित्र से राजकुमार को पहचाना और उसे अपने महल में ले आया। चित्रावली का पाणिग्रहण उसके साथ हुआ।
सागरगढ़ से सुजान के जाने के बाद कंवलावती दुःखी रहने लगी। उसने हंसमित्र को दूत बनाकर रूपनगर भेजा। उसने भ्रमर को अन्योक्ति से राजकुमार को सूचना दो। उसे कंवलावती का स्मरण आ गया और वह चित्रावली को लेकर सागरगढ़ आया। वहाँ से कंवलावती को लेकर वह समुद्री मार्ग से नौका द्वारा नेपाल की ओर रवाना हुआ। समुद्र में तूफ़ान आने से नौका टूट गई। किसी प्रकार कठिनाइयों को पार करके वह नेपाल पहुंचा। वहाँ राजा ने उसे सारा राजपाट सौंप दिया। उसने दोनों रानियों के साथ बहत समय तक राज्य किया।