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हिन्दो प्रेमाख्यानकों का ऐतिहासिक विकास : ८७ मनोहर को संगीत से बड़ा प्रेम था। एक दिन कुछ परदेशी नृत्य • करने वाले आये । मनोहर बारह बजे तक नृत्य देखता रहा । जब वह गाढ़ निद्रा में सो गया तो अप्सराएँ उसके रूप को देखकर उसके अनुकूल कन्या राजकुमारी मधुमालती के पास उसे शय्यासहित महासरनगर उठा ले गईं। मधुमालती शयन कर रही थी। उसी की शय्या के पास इसकी शय्या डाल दोनों के रूप निखरने लगीं। बाद में अप्सराओं के चले जाने पर दोनों की नींद खुली। वे दोनों एक-दूसरे पर मोहित हो गये। दोनों अपना-अपना प्रेम एक-दूसरे पर प्रकट करते हैं और एकदूसरे का परिचय प्राप्त करते हैं। कुमार की प्रेमवार्ता सुन मालती को अपने पूर्वजन्म की बात स्मरण हो आई। दोनों बातें करते-करते एक ही सेज पर सो जाते हैं। अप्सराएं मनोहर को उसके घर पहुँचा देती हैं। इधर सखियों ने मधुमालती की दशा देखी तो सब समझ गईं। मधुमालती ने भी उनसे कुछ छिपाया नहीं। मनोहर और मधुमालती एक-दूसरे के वियोग से व्याकुल रहने लगते हैं। मनोहर अपनी धाय से अपने प्रेम को बात बतलाता है। बाद में किसी की बात न मानकर वह योगी के वेश में मधुमालती की खोज में चल पड़ता है। वह समुद्र में नौका द्वारा यात्रा करता है । तूफान आने से नौका टूट जाती है। सभी साथी बिछुड़ जाते हैं। एक लकड़ी के तख्ते पर बैठकर मनोहर एक जंगल के किनारे पर पहुँचता है। ___ जंगल में एक सेज पर उसे एक सुन्दर युवती दिखाई दी। राजकुमार के पूछने पर वह अपना नाम प्रेमा बतलाती है । चित्रविश्रामपूर के राजा चित्रसेन की वह कन्या है। वह बतलाती है कि एक बार वह अपनी सखियों के साथ खेल रही थी कि एक राक्षस उसे उठा लाया। जंगल में एक वर्ष से उसने किसी मनुष्य को नहीं देखा । प्रेमा की कहानी से मनोहर को यह भी पता चलता है कि मधुमालती उसके बचपन की सखी है। प्रेमा के दिये हुए अस्त्र से मनोहर राक्षस को मारता है । प्रेमा को साथ ले वह चित्रविश्रामपूर पहुँच जाता है। उसके पिता मनोहर का स्वागत करते हैं । एक विशेष तिथि को मधुमालती अपनी मां के साथ प्रेमा के घर आया करती थी। मधुमालती इस बार प्रेमा के प्रयत्न से मनोहर से मिलती है । मधुमालती को मां को पता चल जाता है तो वह उसे शाप