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________________ अनुक्रमणिका P (i) स्वकथ्य (i) प्रकाशकीय (iii) भूमिका डॉ. सागरमल जैन (iv) पुरोवचनिका डॉ. रुद्रदेव त्रिपाठी (v) प्राक्कथन डॉ. तेजसिंह गौड़ • अध्याय १- आगम: सांप्रतिक आविर्भाव की भूमिका आगम का लक्षण, आगम प्रामाण्य: वैदिक दृष्टि सांप्रतिक आगमों का उपदेष्टा। - अध्याय २- आगमों का वर्गीकरण . आगमों की संख्या वृद्धि का कारण, आगमों के वर्गीकरण का रूप, अंग-अंग बाह्य आदि शब्दों का आशय, आगमों का वर्गीकरण, दिगम्बर परम्परा में वर्गीकरण का रूप, आगमों की सांप्रतिक संख्या, स्थानकवासी परम्परा मान्य आगमः। • अध्याय ३- आगमों का रचनाकाल ' आगम सुरक्षा में बाधाएँ, पाटलीपुत्र की वाचना, माधुरी वाचना, वल्लभी वाचना (प्रथम), वल्लभी वाचना (द्वितीय), दिगम्बर परम्परा में शास्त्र लेखन। १७ . अध्याय ४- अंग आगमों का बाह्य परिचय नाम निर्देश, आचारादि अंगों के नामों का.अर्थ, अंगों की भाषा शैली, अंगों का क्रम, अंगों का पद परिमाण, श्वेताम्बर परम्परा, दिगम्बर परम्परा, दिगम्बर परम्परा में अंग आगम। २५ • अध्याय ५- अंग आगमों का आन्तर परिचय आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग-समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति, ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशा, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाकसूत्र, दृष्टिवाद। •अध्याय ६- उपलब्ध अंग आगमों का परिचय आचारांग, सूत्रकृतांग, स्थानांग-समवायांग, व्याख्याप्रज्ञप्ति; ज्ञाताधर्मकथा, उपासकदशांग, अन्तकृतदशा, अनुत्तरोपपातिक दशा, प्रश्नव्याकरण, विपाक सूत्र । ४४ • अध्याय ७- अंगबाह्य आगमों का परिचय कालिक, उत्कालिक, दिगम्बर परम्परा मान्य अंगबाह्य, सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, वैनयिक, कृतिकर्म, दशवैकालिक, उत्तराध्ययन, (५८)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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