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________________ इस सूक्ति को सार्थक करते हुए प्रस्तुत ग्रंथ के प्रणेता 'श्रीजयन्त सेन सूरीश्वरजी . महाराज' ने निरन्तर शास्त्रावगाहन-पूर्वक जिन रत्नों की उपलब्धि की है, उसे मध्यममार्ग का अवलम्बन लेकर सर्वबोध्य भाषा में जैन आगम-साहित्य का विभिन्न दृष्टियों से अनुशीलन किया है । इसकी संक्षिप्त विवरणिका इस प्रकार है- प्रस्तुत अनुशीलन बारह अध्यायों में आवर्जित हैं । इन अध्यायों में क्रमश:- . १- आगमः: साम्प्रतिक, आविर्भाव की भूमिका- शीर्षक से लक्षण प्रामाण्य, उपदेष्टा जैसे विषयों पर चर्चा करते हुए प्रचलित ऊहापोहों की तथ्यात्मक विवेचना की २- आगमों का वर्गीकरण-इस शीर्षक से आगमों की द्वादशांगता, संकलन, संख्यावृद्धि का कारण, वर्गीकरण का रूप, अंग-अंगबाह्य आदि शब्दों का आशय, आगमों का वर्गीकरण, दिमम्बर परम्परा में वर्गीकरण का रूप, आगमों की साम्प्रतिक संख्या, स्थानकवासी परम्परा मान्य आगम, जैसे उपशीर्षकों के द्वारा शास्त्रीय प्रमाणों के साथ, बिना किसी पक्षपात के, तटस्थरूप से दिग्दर्शन कराया है। ३- आगमों का रचनाकाल प्ररूपित करते हुए इस अध्याय में 'आगम सुरक्षा में बाधाएँ: पाटलीपुत्र, मथुरा, वल्लभी (प्रथम और द्वितीया, वाचनाएँ, दिगम्बर परम्परा में शास्त्रलेखन की स्थितियों की प्रामाणिक प्रस्तुति की गई है। कथन की मनोज्ञता इतनी उत्तम है कि पाठक के मन में उठने बाले संशयों को स्वयं उठाकर उनका समाधान भी दिया है। कहीं भी सम्प्रदायगत दुराग्रह को अवकाश नहीं दिया गया है। तुलना में वैदिक साहित्य के सम्बंध में कथित विचारों पर विमर्श भी किया है । यथावश्यक बौद्ध पिटकों के संरक्षणादि के लिए हई व्यवस्था प्रक्रिया का भी स्मरण दिलाया है । वाचनाएं यहाँ चार वर्णित हैं, जबकि छह वाचनाऐं भिन्न-भिन्न समयों में हुई थीं, ऐसा उल्लेख भी मिलता है। . ४- अंग आगमों का बाह्य परिचय- इस अध्याय का उद्देश्य अंग आगमों के बाह्य वैशिष्ट्य से परिचित कराना है। इसमें श्रुतपुरुष का परिचय देकर 'नाम-निर्देश आचारादि अंगों के नामों का अर्थ, अंगों की भाषाशैली, अंगों का क्रम, अंगो का पद-परिमाण, दिगम्बर परम्परा में अंग आगम' परक लघुशीर्षकों में सप्रमाण परिचय कराया है । जैन सम्प्रदाय की दोनों शाखाओं की मान्यता का तारतम्य इस परिचय श्रृंखला से स्पष्ट हो जाता है। ५- अंग आगमों का आन्तर परिचय- इस शीर्षक से वर्ण्य विषय स्वयं स्पष्ट है। इसमें प्रत्येक अंग/आगम का संक्षिप्त किन्तु सारगर्भित अन्तरंग परिचय दर्शित है। दोनों परम्पराओं में प्रवर्तित मान्यताओं का निदर्शन एवं प्रत्येक अंग आगम का
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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