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विस्तार पूर्वक लिखा जा चुका है तथा अभी भी निरन्तर लिखा जा रहा है । जैन आगम साहित्य में केवल धर्म और दर्शन विषयों पर ही चिंतन नहीं किया गया है वरन इन विषयों के अतिरिक्त अन्य विष्यों पर भी पर्याप्त चिंतन हुआ है किंतु उन विषयों पर नहीं के बराबर लिखा गया है । कुछ विशिष्ट आगम ग्रंथों का सांस्कृतिक अध्ययन भी प्रस्तुत किया गया है किंतु वह भी पर्याप्त नहीं है ! इसका परिणाम यह हुआ कि आज भी अधिकांश विद्वानों की यह मान्यता है कि जैन आगम साहित्य में धर्म और दर्शन विषय के अतिरिक्त अन्य विषयों पर कोई विचार नहीं हुआ है, जबकि वस्तुस्थिति इसके विपरीत है । यदि एक एक जैन आगम ग्रंथ का स्वतंत्र रूप से सांस्कृतिक अनुशीलन प्रस्तुत किया जावे तो हमारे कथन की पुष्टि हो जावेगी। प्रस्तुत ग्रंथ कुल बारह अध्यायों में विभक्त है । प्रारम्भ के आठ अध्यायों में विभिन्न दृष्टिकोणों से जैन आगम साहित्य का परिचय प्रस्तुत किया गया है। इनमें आगमों के व्याख्या साहित्य को भी सम्मिलित कर लिया गया है। जैन आगम साहित्य का परिचय संक्षेप में दिया गया है। कारण यह कि इस प्रकार का परिचयात्मक अनुशीलन पूर्व में प्रकाशित ग्रंथों में भलीभांति दिया गया है। विस्तारपूर्वक चर्चा करना इसीलिए अनुपयुक्त समझा गया। __ अध्ययन नवम् में जैन आगमों में वर्णित समाज व्यवस्था पर प्रकाश डाला गया है। दसवें अध्याय में जैन आगम साहित्य में शासन व्यवस्था के सम्बंध में मिलने वाले उल्लेखों का विवरण दिया गया है । ग्यारहवें अध्याय में जैन आगम साहित्य में वर्णित अर्थोपार्जन व्यवस्था का विवरण प्रस्तुत किया गया है और बारहवें अध्याय में धार्मिक व्यवस्था का स्वरूप बताया गया है । इन अध्यायों में प्रस्तुत किये गए विवरण से स्पष्ट है कि जैन आगम ग्रंथ कोरम कोर धर्म और दर्शन का ही विवेचन प्रस्तुत नहीं करते वरन् उनमें अन्य सभी विषयों पर भी विस्तार से चिंतन किया गया है। जैन धर्म में विज्ञान विषय के सम्बंध में तो बहुत किछ लिखा जा चुका है । इस विषय पर हमने यहाँ विचार नहीं किया है । हाँ यहाँ इतना कहना पर्याप्त होगा कि जहाँ आधुनिक विज्ञान ने वनस्पति में प्राण तत्व को अब स्वीकार किया है, वहाँ जैन धर्म शताब्दियों पहले इस बात को कह चुका है। इसी प्रकार अणु और परमाणु के सम्बंध में भी बताया जा चुका है । जीवों का जितना सुंदर विभाजन जैन साहित्य में मिलता है, वह अद्वितीय है।
. नवें अध्याय और ग्यारहवें अध्याय में जो कुछ भी विवरण प्रस्तुत किया गया है, वह सांकेतिक है। इसे समग्र स्वरूप न माना जाये। यह तो एक सरणि है जो अनुसंधानकर्ताओं का मार्गदर्शन करेगी। भावना तो इन विषयों पर विस्तार से लिखने की थी किंतु अन्यान्य कार्यों में अति व्यस्त रहने के कारण मैं अपनी भावना को मूर्तरूप