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ओर से ही औद्योगिक विकास के लिए धन लगाया जाता था। इस कारण कुछ एक धनी व्यापारियों को छोड़कर कम ही लोग पूँजीपति कहलाते थे, लेकिन जो पूँजीपति कहे जाते थे, वे हर तरह के व्यापार करते 1 । वे व्यापार नीति बनाते थे और व्यापार पर नियंत्रण रखते थे ।
कुछ लोग किसी वस्तु, मकान या अन्य साधनों को देकर बदले में किराया और कुछ लोग पूँजी देकर ब्याज लेते थे । उन दिनों कर्ज और सूद लेने की प्रथा थी । कर्जदार को धारणीय कहते थे । वह यदि अपने ही देश में हो, तो उसे कर्जा चुकाना पड़ता था । लेकिन यदि वह समुद्र यात्रा पर बाहर चला गया हो और मार्ग में जहाज डूब गया हो और वह किसी तरह एक धोती से तैरकर अपनी जान बचा ले, तो उसे कर्ज चुकाने का अधिकारी नहीं समझा जाता था । यह उस समय की वणिक नीति थी । यदि कर्जदार के पास कर्ज चुकाने के लिए पैसा तो है, पर वह इतना नहीं है कि सारा कर्ज चुका सके तो साहूकार उस पर मुकदमा करके अपना आधा या चौथाई कर्ज वसूल कर लेता था और यह भुगतान पूरे कर्ज का भुगतान समझा जाता था । यदि कर्ज समय पर नहीं चुकाया जाता, तो कर्जदार को कर्ज के बदले साहूकार की गुलामी करनी पड़ती थी ।
कुछ लोग किसी व्यापार, खेती आदि में पूँजी लगाकर सब तरह के खर्च निकालने के बाद शेष आय को बाँट लेते थे। बड़े-बड़े धनपति उत्पादनकर्ता से थोक भाव पर माल खरीदकर छोटे-छोटे व्यापारियों को बेचते थे अथवा विदेश भेजते थे । स्वयं माल लेकर जल-थल मार्गों द्वारा दूर-दूर की यात्रा करते थे। ऐसा करने से जो मुनाफा होता था, उसके मालिक वे ही माने जाते थे । आगमों में बड्ढि (वृद्धि) शब्द का प्रयोग मिलता है । इसका अर्थ है लाभ और ब्याज । आनन्द गाथापति का उल्लेख आगमों में है । उसके पास व्यापार में लगाने के अतिरिक्त ब्याज पर देने के लिए चार करोड़ सुवर्ण मुद्राएँ सुरक्षित थी ।
वणिक लोगों में से कुछ तो एक जगह दुकान लगाकर व्यापार करते (वणि) और कुछ बिना दुकान के घूम-फिर कर व्यापार करते (विवणि) थे । कक्खपुडिय नाम के वणिक अपनी गठरी बगल में दबाकर चलते थे और गाँव-गाँव घूमकर अपना माल बेचते थे । वर्षा काल में लोग व्यापार के लिए नहीं जाते थे। लोग राजा का आदेश पाकर अपनी गाड़ियाँ लेकर जंगल में जाते थे और वहाँ से लकड़ियाँ काटकर लाते थे । कुम्हार अपनी गाड़ियों में मिट्टी के बर्तन और आयीर (अहीर) घी के घड़े भरकर नगरों में बेचने के लिए लाते थे। जल और थल मार्गों से व्यापार हुआ करता था । आनन्दपुर (बड़नगर, उत्तर, गुजरात) मथुरा और दशार्णपुर (एरछ जिला झाँसी) ये स्थल
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