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________________ + पशुपालन प्राचीन भारत में पशु महत्वपूर्ण धन माना जाता था तथा गाय, बैल, भैंस और भेड़ें राजा की बहुमूल्य संपत्ति मानी जाती थी । प्रज्ञापना सूत्र में अश्व, अश्वतर, छोटक, गर्दभ, उष्ट्र (ऊँट), गाय, नीलगाय, भैंस, मृग, सांबर, वराह, शरभ आदि पशुओं का उल्लेख है । पशुओं के समूह को ब्रज, गोकुल अथवा संगिल्ल कहा जाता था। एक ब्रज में दस हजार गायें रहती थीं। प्रत्येक धनिक पशुपालन करता था। कइयों के तो दो-चार ब्रज होते थे। उपासक दशा में आनन्द श्रावक के आठ ब्रजों का उल्लेख आया है । बहुत से राजा भी गोपालन के शौकीन थे। - स्वस्थ, सुन्दर, बलिष्ठ साँडों का भी आगम में उल्लेख मिलता है । वे स्वच्छंद होकर घूमा करते थे । बैल खेती यान के आधार थे। इसलिए उन्हें बहत ही हिफाजत से रखा जाता था। उन्हें हलों में जोतकर उनसे खेती का काम लिया जाता था। रहंट जोत कर खेतों की सिंचाई की जाती थी और एक गाँव से दूसरे गाँव में धान्य आदि सामान को पहुँचाने के लिए बैलगाड़ियों का उपयोग किया जाता था। पशुओं को समय पर चारा-पानी देते का पूरा ध्यान रखा जाता था। हाथियों को तल (एक तृण), गन्ना, भैसों को बाँस की कोमल पत्तियाँ, घोड़ों को हदिमंथ (काला चना), मूंग आदि तथा गायों को अर्जून घास आदि खाने केलिए दिये जाते थे । चोर गायों आदि को न ले जाये, इसके लिए गाँवों में चौकी रखी जाती थी । ग्वाले (गोवाण, गोपाल) और गडरिये अपनी गायों और भेड़-बकरियों को चराने के लिये चरागाहों में ले जाते थे । भेड़-बकरियाँ आदि पशुओं को बाड़ों में रखा जाता था । उष्ट्रपालों का भी उल्लेख मिलता है । भेड़ों की ऊन व बकरी व ऊँटों के बालों से वस्त्र व पहनने के कपड़े बनाये जाते थे। पंशुओं की बीमारी और उनकी चिकित्सा का भी आगम साहित्य में उल्लेख मिलता है । गोबर के उपले बनाकर उन्हें भोजन आदि के काम में लिया जाता था। गोपालन पर बहुत ध्यान रखा जाता था । अहीर (अमीर) गाय भैंसों को पालते पोसते थे। उनके गाँव अलग होते थे। घी-दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध होता था। दोहनबाड़ा में गायों का दोहन किया जाता था। प्राय: महिलाएँ ही दूध दोहने का काम करती थीं । दही बिलोने का उल्लेख भी आता है । गाय, भैंस, ऊँटनी, बकरी और भेड़ों का दूध काम में लिया जाता था । दही, छाछ, घी और मक्खन को गोरस कहते थे। यह गोरस अत्यंत पुष्टिकारक भोजन समझा जाता था । दही के मटकों को गरम पानी (२०३)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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