________________
कर भाले की नोक पर पत्र रख कर उसे समर्पित करता था। उसके पश्चात् युद्ध प्रारंभ होता था। - युद्ध में अनेक प्रकार के शस्त्रों का प्रयोग किया जाता था। उनमें मुद्गर, मुसंढी (एक प्रकार का मुद्गर) करकय (किदच), शक्ति (त्रिशूल), हल, गदा, मूसल, चक्र, कुन्त (माला), तोमर (एक प्रकार का बाण), शूल, लकुट, मिडिपाल (मोटे फल वाला भाला), शव्वल (लोहे का भाला), पट्टिश (जिसके दोनों किनारों पर त्रिशूल होते है), चर्मेष्ट (चमड़े से मढ़ा हुआ पत्थर), असिखेटक (ढाल सहित तलवाल), खड्ग चाप (धनुष), नाराच (लोहबाण), कणक (बाण), कर्तरिकावासी (लकड़ी छीलने का औजार); परशु (फरसा), शतघ्नी आदि मुख्य हैं।
___ युद्ध के लिए कवच अत्यन्त उपयोगी होता था । बाणों में नागबाण, तामसबाण, पद्मबाण, वह्निबाण, महापुरुष बाण और महारुधिर बाण आदि मुख्य हैं । इन बाणों में अद्भुत और विचित्र शक्ति होती थी। नागबाण जलती हुई उल्का के दंडरूप में शत्रु के शरीर में प्रवेश कर नाग बन कर उसे चारों ओर से लपेट लेता था। तामंक बाण छोड़ने पर रणभूमि में अंधेरा ही अंधेरा फैल जाता था। महायुद्ध में महोरग, गरुड़, आग्नेय, वायव्य और शैल आदि शस्त्रों का उपयोग किया जाता था। * राज्य की आय के स्रोत
लोक जीवन के व्यवहारों का निर्वाह जैसे धन के बिना नहीं होता, वैसे ही राज्य व्यवस्था के लिए भी आय के साधन जरूरी है । इसके लिए प्राचीनकाल में भी लगान
और माल-असबाब पर कर लगाये जाते थे। इनके द्वारा अर्जित आय से राज्य का खर्च चलता था।
आगम साहित्य में अठारह प्रकार के करों का उल्लेख मिलता है- गोकर (गाय बेचने पर दिया जाने वाला कर), महिष कर, उष्ट्र कर, पशु कर, छगली (बकरा) कर, तृणकर, पलाल (पुआल) कर, बुस (भूसा) कर, काष्ठ कर, अंगार कर, सीता कर (हल पर लिया जाने वाला कर), उंबर (गृह) कर, जंघा कर (जंगाकर - चरागाह पर लिया जाने वाला कर), बलीवर्द (बैल) कर, घटकर, चर्मकर, चुल्ला (भोजन - चूल्हा) कर, और अपनी इच्छा से दिया जाने वाला कर । ये कर गाँवों में ही वसूल किये जाते थे। और नगर इनसे मुक्त रहते थे। पुत्र जन्म, राज्याभिषेक आदि अवसरों पर कर माफ किया जाता था । व्यापारियों के माल-असबाब पर भी कर लगाया जाता था। बिक्री के माल पर लगाये जाने वाले कर को शुल्क कहते थे। इनके अतिरिक्त राज्यकोष को समृद्ध बनाने के लिए और भी उपाय किये जाते थे। जैसे यदि कभी संपत्ति का कोई वारिस नहीं होता या कहीं गड़ा हुआ धन मिल जाता, तो उस पर भी राजा का अधिकार
(१९२)