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प्रौढ़ों के क्रीड़ा करने के लिए अनेक उद्यान और आराम आदि होते थे । उद्यान में विट लोग विविध प्रकार के वस्त्र आदि धारण कर हस्त आदि के अभिनय पूर्वक श्रंगार काव्य का पठन करते थे। सुन्दर वस्त्र-आभूषणों से अलंकृत स्त्री और पुरुष वहाँ क्रीड़ा करने जाते थे। श्रेष्ठीपुत्र वहाँ अपने-अपने घोड़ों, रथों, गौरथों, युग्मों और डगणों (यान विशेष) पर आरूढ़ होकर इतस्त भ्रमण किया करते थे। राजाओं के उद्यान अलग होते थे और वे अपने अन्त:पुर की रानियों को साथ लेकर क्रीड़ा के लिए वहाँ जाते थे। दम्पती और प्रेमी युगल माधवी लतागृहों में क्रीड़ा करते थे। राजा अपनी रानियों के साथ पाँसों से खेलते थे। खोटे पाँसों से जुआँ खेलते थे। .... * जीवनोपयोगी साधन
जीवनधारण के लिए मूलभूत तीन आवश्यकताएँ हैं- भोजन, वस्त्र और निवास के लिए घर । हमारे देश में खेती-बाड़ी की बहुतायत थी। इस कारण भोजन की यहाँ कमी नहीं रहती थी। यह बात दूसरी थी कि सामान्य मनुष्य को उत्तम भोजन नहीं मिलता था । आगमों में चार प्रकार के भोजन का उल्लेख आया है । अशन, पान, खाद्य और स्वाद । भोज्य पदार्थों में दूध, दही, मक्खन, घी, तेल, मधु, गुड़ और सेवई खाद्य पदार्थ थे। नये चावल दूध में डालकर खीर पंकाई जाती थी। लोग सत्तू में घी डालकर खाते थे । नमक बनाने का काम बहुत महत्वपूर्ण था । नमक के अनेक प्रकारों का उल्लेख मिलता है- सावर्चती, सैंधव, लवण, रोम (खानों से निकला हुआ) समुद्र पांसुखार, मिट्टी से बनाया हुआ और काला नमक आदि । जिस देश में नमक उपलब्ध नहीं होता था, वहाँ क्षारभूमि की मिट्टी (अस) काम में ली जाती थी। इसके अतिरिक्त निम्नांकित व्यंजनों के नाम मिलते हैं
सूप, ओदन (चावल), जव-जौ, गौरस, जूस (मूत्र आदि का रस), मक्ष्य, जिसमें मिश्री का उपयोग बहुतायत से किया गया हो, गुल लावणिया, (गोल पापड़ी), मूलफल, हरियग, रसालू (राजा के योग्य बनाया हुआ भोजन, जिसे दो पण घी, एक पण शहद, आधा आढक दही, बीस दाने काली मिर्च और दस पण खंड गुड़ डालकर तैयार किया जाता था ।) पान, पानीय, पानक-शाक (मट्ठा डालकर बनाए हुए दही बड़े) आदि। ___अन्य खाद्य पदार्थों में गुड़ और घी से पूर्ण रोट्टग (बड़ी रोटी), पेत्र (पीने योग्य मांड रसा आदि), हविपूत अथवा घृतपूर्ण (घयपूरिया-घेवर), पालग, महुरय (आम या नींबू के रसे से बनाया हआ मीठा शर्बत), सिंह केसरिया मोदक, गुलपाणिय (तिल
और गुड़ की बनी मिठाई), मंडक (एक प्रकार की रोटी), इट्टगा (सेवई) और पप्पडिय (पापड़), बड़ा और पूआ आदि का उल्लेख मिलता है । कल्लणग (कल्याण) चक्रवर्ती का भोजन होता था, जिसे केवल चक्रवर्ती ही भक्षण करता था।
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