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________________ पिंडनियुक्ति में आठ अधिकार हैं-उद्गम, उत्पादन, एषणा, संयोजना, प्रमाण, अंगार, धूम और करण । इनमें अपने-अपने नाम के अनुसार विषय का वर्णन किया गया है। वर्तमान में इसकी गाथाएँ भाष्य में मिल जाने से यह मूल रूप में उपलब्ध है। ___पिण्डनियुक्ति भाष्य में पिंड, आधाकर्म, औद्देशिक, मिश्र जात, सूक्ष्म प्राभूतिका, विशोधि, अवशोधि आदि श्रमण धर्म संबंधी विषयों का विवेचन किया गया है। आचार्य मलयगिरि ने नियुक्ति के आधार पर पिण्डनियुक्ति वृत्ति नामक संस्कृत टीका ग्रंथ लिखा है। इसमें भाष्य की भी ४६ गाथाएँ समाविष्ट है । प्रारंभ में वर्धमान जिनेश्वर को नमस्कार करके गुरुदेव को प्रणाम किया है और अपनी वृत्ति लिखने की प्रतिज्ञा की है । वृत्ति में व्याख्या को स्पष्ट करने के लिए यत्र तत्र अनेक कथानकं दिए हैं, जो संस्कृत में है । वृत्ति का ग्रंथमान ६७०० श्लोक प्रमाण है । क्षमारत्न सूरि और माणिक्य शेखर आदि ने भी इस पर व्याख्या ग्रंथ लिखे हैं । कभी-कभी पिण्डनियुक्ति के स्थान पर ओघ नियुक्ति की गणना मूलसूत्रों में की जाती है । इसमें साध्वाचार संबंधी नियमों का प्रतिपादन किया गया है । बीच-बीच में अनेक कथाएँ भी दी गई हैं। __ओघनियुक्ति पर बृहद् और लघु दो भाष्य लिखे गए हैं । बृहद भाष्य में २५१७ गाथाएँ हैं । उनमें नियुक्ति गाथाएँ भी सम्मिलित हैं । ग्रंथ में भाष्यकार के नाम आदि के बारे में किसी प्रकार का उल्लेख नहीं है। इसके लघु भाष्य में ओघ, पिंड, व्रत, श्रमण, धर्म, संयम, वैयावृत्य, गुप्ति, तप, समिति, भावना, प्रतिमा, इंद्रिय निरोध, प्रतिलेखना, अभिग्रह, अनुयोग, कायोत्सर्ग, औपघातिक, उपकरण आदि विषयों का संक्षिप्त व्याख्यान किया गया है। द्रोणसूरि ने ओघनियुक्ति व उसके लघुभाष्य पर संस्कृत में व्याख्या ग्रंथ लिखा है। इनका समय विक्रम की ग्यारहवी-बारहवीं शताब्दी है। ये पाटण संघ के प्रमुख अधिकारी थे । इन्होंने अभयदेवसूरि कृत टीकाओं का संशोधन किया था। इस वृत्ति के अतिरिक्त इनका अन्य कोई टीका ग्रंथ नहीं है । वृत्ति की भाषा सरल और शैली सुगम है । मूल पदों के शब्दार्थ के साथ-साथ तद्-तद् विषय का शंका समाधानपूर्वक संक्षिप्त विवेचन किया है। कहीं-कहीं प्राकृत और संस्कृत उद्धरण भी दिए गए हैं। प्रारंभ में परमेष्ठी को नमस्कार किया है । वृत्ति में अनेक स्थानों पर भाष्य गाथाओं का भी व्याख्यान किया है । इसमें भाष्य की गाथाएँ ३२२ और नियुक्ति की गाथाएँ ८११ है । इस प्रकार नियुक्ति और भाष्य दोनों की कुल मिलाकर ११३३ गाथाओं पर वृत्ति लिखी है। ज्ञानासागर (संवत् १४३९) और माणिक्य शेखर ने भी ओघनियुक्ति पर संस्कृत टीका ग्रंथ लिखे हैं। (१६०)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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