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उक्त व्याख्याकारों के अतिरिक्त जिनभट नमि साधु (संवत् ११२२), ज्ञानसागर (स. ११४०) शुभवर्धन गणि (स. १५४०), हितरुचि (संवत् १६९७), आदि ने भी टीका ग्रंथ लिखे हैं । कुछ और प्रतियाँ भी उपलब्ध होती हैं, जिनके प्रणेता अज्ञात हैं और कुछ के नाम और समय के बारे में अभी तक निश्चय नहीं हो पाया है ।
नंदीसूत्र - इस सूत्र पर लिखे गए व्याख्या ग्रंथों में जिनदास गणि महत्तर लिखित नंदी चूर्णि का प्रथम स्थान है। चूर्णि में मूल सूत्रों की व्याख्या की गई है । मुख्य रूप से भाषा प्राकृत है, लेकिन यत्र तत्र संस्कृत का भी प्रयोग देखने में आता
। व्याख्यान शैली संक्षिप्त एवं सारग्राही है । सर्वप्रथम जिन और वीर की स्तुति की और उसके बाद संघ स्तुति की व्याख्या की गई है । मूल सूत्रानुसार तीर्थंकरों, गणधरों और स्थविरों की नामावली भी दी है और उसके बाद तीन प्रकार की पार्षद का संकेत करके ज्ञानचर्चा प्रारंभ की है। केवल ज्ञान और केवल दर्शन की चर्चा के प्रसंग में तीन मत उद्धृत किए हैं - १. केवल ज्ञान और केवल दर्शन की युगपत् - अवस्था (योगपत्व), २. दोनों का क्रमिकत्व और ३. दोनों का अभेद । इन तीनों के समर्थन में कुछ गाथाएँ देकर अंत में केवल ज्ञान व केवल दर्शन में क्रमभावित्व का समर्थन किया
हैं ।
चूर्णि हरिभद्रसूरि ने नन्दीचूर्णि पर नंदीवृत्ति नामक व्याख्या ग्रंथ लिखा है, का रूपान्तर है । इसमें उन्हीं विषयों का वर्णन किया गया है, जो नंदी चूर्णि में है । प्रारंभ में मंगलाचरण करने के बाद के शब्दार्थ, निक्षेप आदि का विचार है । ग्रंथमान २६३६ श्लोक प्रमाण है ।
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आचार्य मलयगिरी ने भी नंदीवृत्ति नामक बृहद् टीका ग्रंथ लिखा है, जो दार्शनिक चर्चा से ओतप्रोत है । इसमें यत्र तत्र उदाहरण के रूप में संस्कृत कथानक भी दिए हैं । संस्कृत और प्राकृत उद्धरणों का भी उपयोग किया है। प्रारंभ में वर्धमान जिन एवं जिन प्रवचन का सादर स्मरण किया है । दार्शनिक विचारों की दृष्टि से इसमें जीव सत्ता सिद्धि, वचन अपौरुषेयत्व खण्डन, सर्वज्ञ सिद्धि नैरात्म्य निराकरण, सन्तानवाद का खण्डन, सांख्य मुक्ति, निरास, धर्म- धर्मी, भेदाभेद सिद्धि आदि का समावेश किया गया है ।
उक्त आचार्यों के अतिरिक्त जयदयाल, पार्श्वनाथ आदि ने भी टीका ग्रंथ लिखे
हैं ।
आवश्यक सूत्र अवचूरी टब्बार्थ की रचना अभिधान राजेन्द्र कोशकार श्री राजेन्द्रसूरिजी महाराज ने की है और वह अमुद्रित है। पुरानी गुजराती में मुनि धर्मसिंह ने और हिन्दी में आचार्य आत्माराम ने सरल सुबोध टीका ग्रंथ लिखे हैं ।
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