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आचार्य मलयगिरि ने इसके द्वितीय शतक पर वृत्ति लिखी है, जिसका ग्रंथमान ३७५० श्लोक प्रमाण है। . ज्ञाता धर्मकथा- इसकी संस्कृत टीका अभयदेव सूरि कृत है। प्रारंभ में भगवान महावीर को नमस्कार करके टीका लिखने का संकल्प किया गया है । प्रथम सूत्र के व्याख्यान में चम्पा नगरी का, दूसरे सूत्र की व्याख्या में पूर्णभद्र चैत्य का, तीसरे सूत्र के व्याख्यान में कोणिक राजा का और चौथे में सुधर्मा का परिचय देने के पश्चात पाँचवें सूत्र में ग्रंथ के दोनों श्रुतस्कंधों का परिचय देते हुए बताया है कि प्रथम श्रुतस्कंधों का नाम ज्ञात है और ज्ञात का अर्थ होता है उदाहरण । अर्थात् इस स्कंध में आचार आदि की शिक्षा देने के उद्देश्य से कथाओं के रूप में विविध उदाहरणों का संग्रह है। द्वितीय श्रुतस्कंध का नाम धर्म कथा है, जिसमें धर्मप्रधान कथाओं का समावेश किया गया है। अनन्तर प्रथम श्रुतस्कंध के अंतर्गत आगत उन्नीस उदाहरण कथाओं के अध्ययनों की अर्थ सहित नामावली दी गई है । इसके बाद प्रत्येक अध्ययन गत कथा की व्याख्या करके अंत में कठिन शब्दों के अर्थ और उसका फलितार्थ स्पष्ट किया है तथा उसकी पुष्टि के लिए तदर्थ गर्भित गाथाएँ उद्धृत की है।
द्वितीय श्रुतस्कंध में उदाहरणों के माध्यम से नहीं, किन्तु साक्षात् धर्मकथाओं के द्वारा ही धर्मार्थ का वर्णन किया गया है । इस द्वितीय श्रुतस्कंध में धर्म कथाओं के दस वर्ग हैं और प्रत्येक वर्ग में विविध अध्ययन है, जिनका व्याख्यान सर्वसुगम: शेष सूत्र सिद्धम' ऐसा लिखते हुए सिर्फ चार पंक्तियों में समाप्त कर दिया गया है ।
टीका का ग्रंथमान ३८०० श्लोक प्रमाण है तथा ग्रंथ समाप्ति की तिथि वि.स. ११२० विजया दशमी है । इसकी लेखन समाप्ति भी अणहिल पाटन नगर में हुई।
उपासकदशांग- इस अंग आगम के संस्कृतं टीकाकार अभयदेव सूरि हैं। लोकभाषा टीकाकार मुनि धर्मसिंह है। संस्कृत टीका सूत्रस्पी है । ज्ञाता धर्म कथा की तरह इसमें भी सूत्रगत विशेष शब्दों के अर्थ को स्पष्ट किया गया है, जिससे इसका भी विस्तार अधिक नहीं है।
प्रारंभ में वर्धमान स्वामी को नमस्कार करने के बाद उपासक दशा की टीका लिखने की प्रतिज्ञा की है। उपासक दशा का अर्थ स्पष्ट करते हुए कहा है-उपासक अर्थात् श्रमणोपासक और दशा अर्थात् दस । अर्थात् श्रमणोपासक संबंधी अनुष्ठान का प्रतिपादन करने वाले दस अध्ययन रूप सूत्र को उपासक दशा कहते हैं। इन कथाओं में आनन्द, कामदेव आदि भगवान महावीर के दस प्रमुख श्रावकों, उपासकों के चरित्र वर्णन द्वारा श्रावक धर्म का प्रतिपादन किया गया है । टीका में कहीं, कहीं व्याख्यानान्तर का भी निर्देश किया गया है । अनेक स्थानों पर अर्थ समझने के लिए ज्ञाता धर्म कथा की व्याख्या से अर्थ समझ लेने का संकेत किया है।
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