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सूत्रकृतांग-आचारांग की तरह इस दूसरे सूत्र पर भी नियुक्ति, चूर्णि, संस्कृत टीका और बालावबोध (लोकभाषा टीका) लिखे गए हैं । इसके नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय), चूर्णिकार जिनदास गणि (यह ग्रंथ अनुपलब्ध है। इसके रचयिता तत्वार्थ भाष्य पर वृहद्वृत्ति लिखने वाले आचार्य सिद्धसेन हैं, ऐसा संशोधन करने वाले विद्वानों का अभिमत है।) महत्तर संस्कृत टीकाकार शीलांकाचार्य और बालावबोधकार मुनि धर्मसिंह हैं।
नियुक्ति में २०५ गाथाएँ हैं । रचना पद्धति के अनुसार प्रस्तुत नियुक्ति में अनेक पदों का निक्षेप पद्धति से निक्षेप किया गया है। जैसे कि गाथा, षोडश, श्रुत स्कंध, पुरुष, विभक्ति, समाधि, मार्ग, आदान, ग्रहण, अध्ययन, पुण्डरीक, आहार, प्रत्याख्यान, सूत्र, आर्द्र आदि । इस नियुक्ति में पर्यायवाची शब्दों की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया गया है । गाथा १८ और २० में सूत्रकृतांग शब्द का उल्लेख है । १८० क्रियावादी, ८४ अक्रियावादी, ६७ अज्ञानवादी और ३२ वैयनिक इन ३६३ वादीओं का उल्लेख इसमें है । गाथा १२७ से १३१ में गुरु शिष्य के भेद-प्रभेदों का निर्देश हैं। . गाथा ६६-६७ में पंद्रह प्रकार के परम अधार्मिक देवों के नाम गिनाए हैं तथा
आगे की कुछ गाथाओं में बताया है कि ये परमाधामी नरकवासियों को किस प्रकार सताते हैं और कैसी-कैसी यातनाएँ देते हैं। .
सूत्रकृतांग चूर्णि की विवेचन शैली आचारांग चूर्णि जैसी है । इसमें प्राकृत की अपेक्षा संस्कृत भाषा प्रयोग की बहलता है और निम्नलिखित विषयों पर प्रकाश डाला गया है-मंगलाचरण, तीर्थसिद्ध संघात, विस्रसाकरण, बंधनादि परिणाम, भेदादि परिणाम, क्षेत्रादि करण, आलोचना, परिग्रह, ममता, एकात्मवाद, तज्जीवतच्छरीरवाद, अकारात्मवाद, स्कंधवाद, नियतिवाद, अज्ञानवाद, कर्तावाद, निराशावाद, वैनयिकवाद, नास्तिक मत चर्चा, सांख्यमत चर्चा, ईश्वर कर्त्तव्य चर्चा, स्याद्वाद, आजीवक मत निरास, गोशालकं मत निरास, बौद्धमत निरास, जातिवाद निरास आदि । विभिन्न दर्शनों की चर्चा होने से इस चूर्णि को सिद्धांत की अपेक्षा चर्चा का ग्रंथ कह सकते हैं।
आचार्य शीलांक की सूत्रकृतांग टीका मूल और नियुक्ति पर है । प्रारंभ में जिन भगवन्तों को नमस्कार करके प्रस्तुत विवरण को लिखने की प्रतिज्ञा की है। आचार्य ने टीका को सब दृष्टियों से सफल बनाने का प्रयत्न किया है और दार्शनिक विचारों को स्पष्ट करने लिए स्वतंत्र परंपरा की मान्यताओं का असंदिग्ध निरूपण किया है। लेकिन यहाँ एक बात विशेष ध्यान देने योग्य हैं, वह यह कि यत्र तत्र अनेक उद्धरण तो अवश्य दिए हैं, लेकिन उनके लेखक या ग्रंथ का नामोल्लेख नहीं किया है । .. अंत में टीका का ग्रंथमान १२८५० श्लोक प्रमाण बताकर संकेत दिया है कि
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