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________________ आचार्य हेमचंद्र ने स्वहस्त लिखित जीव समास वृत्ति की प्रति के अंत में अपना जो परिचय दिया है, उसमें उन्होंने अपने को यम, नियम, स्वाध्याय व ध्यान के अनुष्ठान में रत परम नैष्ठिक पण्डित श्वेताम्बराचार्य भट्टारक के रूप में प्रस्तुत किया है । यह प्रति उन्होंने वि.स. ११६४ में लिखी है। अपनी विशेषावश्यक भाष्य वृत्ति के अंत में उन्होंने जो प्रशस्ति लिखी है, उसके आधार से यह प्रतीत होता है कि उन्होंने निम्नलिखित ग्रंथों की रचना की है १. आवश्यक टिप्पण, २. शतक विवरण, ३. अनुयोग द्वार वृत्ति, ४. उपदेश नाम माला सूत्र, ५. उपदेश माला वृत्ति, ६. जीव समास विवरण, ७. भव भावना सूत्र, ८. भव भावना विवरण, ९. नंदी टिप्पण, १०. विशेषावश्यक भाष्य बृहदवृत्ति । इन ग्रंथों का परिमाण करीब अस्सी हजार श्लोक प्रमाण है। उक्त प्रमुख टीकाकारों के अतिरिक्त नेमिचंद्र सूरि ने उत्तराध्ययन वृत्ति और श्रीचंद्र सूरि ने अंगबाह्य आगमों पर टीका ग्रंथ लिखे हैं। आगमों पर संस्कृत टीका ग्रंथ लिखने का क्रम विक्रम की सतरहवीं शताब्दी तक चलता रहा। उसके बाद लोक भाषाओं का विकास होते जाने से कतिपय विद्वान आचार्यों ने अपभ्रंश, गुजराती आदि लोकभाषाओं में स्वतंत्र रूप में या टीका ग्रंथों के रूप में रचनाएँ प्रारंभ कर दी। लोकभाषा टीकाकार- लोकभाषाओं में आगमिक टीकाग्रंथ, बालावबोध नाम से लिखे गए । बालावबोधों के लेखकों में साधुरत्न सूरि के शिष्य पार्श्वचंद्र गणि (वि.स. १५७२) का नाम उल्लेखनीय है । इनके बाद मुनि धर्मसिंह का नाम है । इन्होंने भगवती, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, चंद्रप्रज्ञप्ति और सूर्य प्रज्ञप्ति इन पाँच सूत्रों को छोड़कर शेष स्थानकवासी मान्य सत्ताईस आगमों के बालावबोध (टब्बे) लिखे हैं। मुनि धर्मसिंह जामनगर (सौराष्ट्र) के निवास उनके पिता का नाम जिनदास और माता का नाम शिंवादेवी था । वे जब पंद्रह वर्ष के थे, तब लोंकागच्छ के आचार्य रत्नसिंह के शिष्य देवजी मुनि का जामनगर में आगमन हुआ। उनके व्याख्यान से प्रभावित होकर उन्होंने और उनके पिता ने दीक्षा ग्रहण की। अध्ययन करने से उन्हें शास्त्रों का अच्छा ज्ञान हो गया। उनके बारे में यह कहा जाता है कि वे दोनों हाथों से ही नहीं दोनों पैरों से भी लेखनी पकड़कर लिख सकते थे । वि.स. १७२८ आश्विन शुक्ला ४ को उनका निधन हुआ। मुनि धर्मसिंह ने सत्ताईस सूत्रों के बालावबोधों (टब्बों) के अतिरिक्त निम्नलिखित गुजराती ग्रंथों की भी रचना की है-समवायांग की हुंडी, भगवती का यंत्र, प्रज्ञापना का यंत्र, स्थानांग का यंत्र, जीवाभिगम का यंत्र, जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति का यंत्र, चंद्रप्रज्ञप्ति का यंत्र, सूर्य प्रज्ञप्ति का यंत्र, राजप्रश्नीय का यंत्र, व्यवहार की हुंडी, सूत्र (१३३)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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