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के तात्विक विचारों से आचार्य हरिभद्र परिचित थे । अतः यह संभव नहीं है कि ई.स. ५२८ के बाद वे न रहे हो । हरिभद्र के समय निर्धारण का एक दूसरा प्रबल प्रमाण उद्योतनसूर का प्राकृत ग्रंथ कुवलयमाला कथा है। यह ग्रंथ शक संवत् ७७० की अंतिम तिथि अर्थात् २१ मार्च ७७९ को पूर्ण हुआ था। इस ग्रंथ की प्रशस्ति में उद्योतनसूरि ने हरिभद्र का नामोल्लेख करके उन्हें अपने दर्शन शास्त्र के गुरु के रूप में माना है और अनेक ग्रंथों के रचयिता के रूप में इनका वर्णन किया है। आचार्य हरिभद्र और कुवलयमाला के कर्ता उद्योतन सूरि समकालीन थे | इतनी विशाल ग्रंथराशि को लिखने वाले महापुरुष की आयु करीब साठ-सत्तर साल की तो होनी ही चाहिए । अतः ईसा की आठवीं शताब्दी के प्रथम दशक में हरिभद्र का जन्म और उसी शताब्दी में स्वर्गवास मान लिया जाए तो कोई असंगति प्रतीत नहीं होगी । अतः हम ई.स. ७०० से ७७० अर्थात् वि.स. ७५७ से ८२७ तक हरिभद्रसूरि का सही समय निश्चित करते हैं ।
आचार्य शीलांक के लिए कहा जाता है कि इन्होंने प्रथम नौ अंग आगमों पर टीकाएँ लिखी थीं, लेकिन वर्तमान में आचारांग और सूत्रकृतांग की टीकाएँ उपलब्ध हैं। आचारांग टीका की प्रतियों में भिन्न-भिन्न समय का उल्लेख है । जैसे किं किसी पर शक संवत् ७७२ तो किसी पर शक में संवत् ७८४ या ७९८ । इससे यही अनुमान लगाया जा सकता है कि शक की आठवीं अर्थात् विक्रम की नौवीं - दसवीं शताब्दी का इनका रूप है 1
शीलांकाचार्य शीलाचार्य एवं तत्वाचार्य के नाम से भी प्रसिद्ध है ।
वादिवेताल शांतिसूरि उत्तराध्ययन सूत्र की टीका के कर्ता है । इनका जन्म राधनपुर (गुजरात) के पास ऊण-उन्नतायु नामक गाँव में हुआ था । इनके पिता का नाम धनदेव, माता का नाम धनश्री तथा स्वयं का नाम भीम था । दीक्षा के पश्चात् इनका नाम शांति पड़ा।
शांतिसूर का समय पाटन के राजा भीमराज (शासनकाल वि.स. १०७८ ११२०) के समकालीन माना जाता है । ये भीमराज की सभा में वादी चक्रवर्ती तथा कवीन्द्र के रूप में प्रसिद्ध थे । मालव प्रदेश में विहार करते समय धारा नगरी के प्रसिद्ध राजा भोज की सभा में (शासनकाल वि.स. १०३७ से ११११) चौरासी वादियों को पराजित करने पर राजा भोज ने इन्हें वादी वेताल के पद से विभूषित किया था । धारा नगरी में कुछ समय ठहरकर इन्होंने महाकवि धनपाल की तिलक मंजरी का संशोधन किया और बाद में धनपाल के साथ ये भी पाटन आ गए ।
इनके गुरु का नाम विजयसिंह सूरि था । विजयसिंह सूरि ने इन्हें दीक्षित किया
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