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प्रायः सभी आगमों पर व्याख्या ग्रंथ लिखे गए हैं। कई ग्रंथ तो ऐसे हैं, जिन पर अनेक आचार्यों ने व्याख्या ग्रंथ लिखे हैं। लेकिन उनमें भी कल्पसूत्र (दशाश्रुतस्कंध का आठवाँ अध्ययन), आवश्यक सूत्र और उत्तराध्ययन सूत्र की टीकाओं की सूची काफी बड़ी है । इसका कारण यही है कि पर्युषण पर्व में कल्पसूत्र के वाचन का विशेष प्रचार है तथा आवश्यक सूत्र का संबंध श्रमणचर्या से है एवं उत्तराध्ययन में समग्र जैन सिद्धांतों का सार गर्भित कर दिया गया है। उक्त संकेत का यह आशय नहीं है कि अन्य आगमों पर व्याख्या ग्रंथ लिखे ही नहीं गए । उन पर भी व्याख्या ग्रंथ लिखे गए हैं और यदि उनके ग्रंथमानों का परिमाण देखा जाए तो वह हजारों श्लोक प्रमाण है । * कतिपय प्रमुख व्याख्याकार
पूर्वोक्त व्याख्या प्रकारों में संकलित आगम नामों से यह भलीभाँति स्पष्ट हो जाता है कि प्रत्येक आगम की व्याख्या हुई है, चाहे फिर उसका व्याख्या प्रकार एक हो या एक से अधिक । अतः अब यह जानने की सहज जिज्ञासा होती है कि उन व्याख्याकार विद्वानों के नाम और उनका परिचय क्या है ? जिन्होंने साहित्य कोष की श्रीवृद्धि में अपना योगदान दिया है। समाधानार्थ यद्यपि उन सभी आचार्यों का नामोल्लेख करना आवश्यक है, लेकिन यहाँ कतिपय प्रमुख व्याख्याता आचार्यों के नाम और उनमें भी जिनके परिचय की यथोचित जानकारी उपलब्ध हैं, उनका संक्षेप में परिचयात्मक विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है।
. .नियुक्तिकार-आगमिक व्याख्या प्रकारों में नियुक्ति का प्रथम स्थान है और आचार्य भद्रबाह (द्वितीय) ने इस विधा का पहले उपयोग किया। गोविन्दाचार्य भी दूसरे नियुक्तिकार हैं, लेकिन उनकी कृतियाँ उपलब्ध न होने से यही मानना पड़ता है कि आचार्य भद्रबाहुं (द्वितीय) ने जैन वाङ्मय के क्षेत्र में नियुक्ति विधा का उपयोग सर्वप्रथम किया। ___नियुक्तिकार आचार्य भद्रबाहु चतुर्दश पूर्वधर आर्य भद्रबाहु से भिन्न है। इसीलिए उनसे पार्थक्य बताने के लिए यहाँ द्वितीय शब्द का प्रयोग किया है । आगम प्रभावक श्री पुण्यविजयजी महाराज का मन्तव्य है कि श्रुतकेवली भद्रबाहु स्वामी ने भी निर्यक्तियों की रचना की थी। उनके पश्चात गोविन्दवाचक जैसे अन्य आचार्यों ने नियुक्तियाँ लिखीं। उन सभी नियुक्ति गाथाओं का संग्रह कर तथा अपनी ओर से कुछ नवीन गाथाएँ बनाकर द्वितीय भद्रबाहु ने नियुक्तियों को अंतिम रूप दिया।
नियुक्तिकार भद्रबाहु प्रसिद्ध ज्योतिर्विद वराहमिहर के सहोदर माने जाते हैं एवं वे अष्टांग निमित्त व मंत्रविद्या में पारंगत नैमेत्तिक भद्रबाह के रूप में भी प्रसिद्ध है । उवसग्गहरं स्तोत्र और भद्रबाहु संहिता (ज्योतिष ग्रंथ) भी इन्हीं की रचनाएँ है कहा
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