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________________ हुए बताया है कि जिस गच्छ में स्थविरा वृद्धा साध्वी के बाद युवती साध्वी और युवती के बाद स्थविरा, इस प्रकार सोने की व्यवस्था हो, उसे ज्ञान चारित्र का आधारभूत श्रेष्ठ गच्छ समझना चाहिए । इस प्रकीर्णक में एक सौ सैंतीस गाथाएँ हैं और इसे महानिशीथ, बृहतकल्प और व्यवहार सूत्र के आधार पर बनाया गया है। ११. गणिविद्या- यह गणित विद्या अर्थात् ज्योतिष विद्या का ग्रंथ है । इसमें इन नौ विषयों (नव बल) का विवेचन है-१. दिवस, २. तिथि, ३. नक्षत्र, ४. करण, ५. ग्रहदिवस, ६. मुहूर्त, ७. शकुन, ८. लाभ, ९. निमित्त । अंत में बताया है कि दिवस से तिथि, तिथि से नक्षत्र, नक्षत्र से करण, करण से ग्रह दिवस, ग्रह दिवस से मुहूर्त, मुहूर्त से शकुन, शकुन से लग्न और लग्न से निमित्त बलवान होता है । इसमें बयासी गाथाएँ १२. देवेन्द्रस्तव-नाम के अनुसार इसमें बत्तीस देवेन्द्रों का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। प्रारंभ में कोई गृहस्थ ऋषभादि तीर्थंकरों को वर्णन करके अंतिम तीर्थंकर महावीर की स्तुति करता है । बत्तीस देवेंद्रों से पूजित महावीर स्वामी की स्तुति करके वह अपनी पत्नी के सामने उन इंद्रों की महिमा का वर्णन करता है । इस वर्णन में निम्न पहलुओं पर प्रकाश डाला गया है-इंद्रों के नाम, आवास, स्थिति, भवन, विमान, नगर, परिवार, श्वासोच्छवास, अवधिज्ञान आदि । इसमें तीन सौ सात गाथाएँ हैं। १३. मरण समाधि- इसमें छह सौ तिरसठ गाथाएँ हैं । समाधि से मरण कैसे होता है ? यह उसकी विधिपूर्वक बताया है। आराधना, आराधक, अनाराधक, परिकर्म से आलोचना इत्यादि का स्वरूप, सरिगण, शल्योद्धार, ज्ञान चारित्र का उद्यम, संलेखना विधि, कषाय, प्रमादादि त्याग, प्रत्याख्यान, पण्डितमरण, अभ्यात मरण, क्षमापना, संस्तारक, अनित्यादि भावना, मोक्षसुख की अपूर्वता, ध्यान आदि अनेक विषयों का इसमें समावेश किया गया है । अंत में बताया गया है कि यह प्रकीर्णक मरणविभक्ति, मरण विशोधि, मरणसमाधि, संलेखना श्रुत, भक्तपरिज्ञा, आउर पच्चक्खाण, महा प्रत्याख्यान और आराधना इन आठ प्राचीन श्रुत ग्रंथों के आधार पर निर्मित हुआ है। इसका दूसरा नाम मरणविभक्ति भी है । अनेक प्रकार के परीषह-कष्ट सहन कर पण्डित मरण पूर्वक मुक्ति प्राप्त करने वाले अनेक महापुरुषों के यत्र तत्र दृष्टान्तं भी दिए गए हैं।
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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