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से संबंधित है । ये क्रियाएँ आहार गवेषणा से संबंधित है। दसवाँ उद्देश भी गुरुचातुर्मासिक प्रायश्चित से संबंधित है । इसमें साधु के आपसी व्यवहार से संबंधित क्रियाओं का विशेषतया उल्लेख किया गया है, जो गुरुचातुर्मासिक प्रायश्चित के योग्य हैं । बारहवें उद्देश में लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित के योग्य कुछ क्रियाओं का उल्लेख है। तेरहवें उद्देश में भी लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित के योग्य क्रियाओं का संकेत किया गया है । इन क्रियाओं का अधिकतर संबंध सचित्त पृथ्वी पर बैठने, सोने, स्वाध्याय करने, अन्य तीर्थकों को शिल्पकला सिखाने, जन्तर-मन्तर करने, फलाफल बताने आदि से है । चौदहवें उद्देश में पात्र संबंधी दोषपूर्ण क्रियाओं पर प्रकाश डाला गया है। पंद्रहवें, सोलहवें, सतरहवें और अठारहवें उद्देश में लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित योग्य विभिन्न क्रियाओं का उल्लेख किया गया है। उन्नीसवें उद्देश में निम्नोक्त क्रियाओं के लिए लघु चातुर्मासिक प्रायश्चित का विधान किया गया है
अचित वस्तु मोल लेना, लिवाना, घूस ले कर देने वाले से ग्रहण करना, उधार लेना, उधार लिवाना आदि । रोगी साधु के लिए तीन दत्ती ( दिए जाने वाले पंदार्थ की अखण्ड धारा अथवा हिस्सा) से अधिक अचित्त वस्तु ग्रहण कर ग्रामानुग्राम विहार करना, अचित वस्तु को पानी में गलाना, अस्वाध्याय के काल में स्वाध्याय करना, इन्द्र महोत्सव, स्कन्द महोत्सव, यक्ष महोत्सव एवं भूत महोत्सव के समय स्वाध्याय करना, चैत्री, आषाढ़ी, भाद्रपदी एवं कार्तिकी प्रतिपदाओं के दिन स्वाध्याय करना रात्रि के प्रथम तथा अंतिम इन चारों प्रहरों के समय स्वाध्याय नहीं करना, नीचे के सूत्र का उल्लंघन कर ऊपर के सूत्र की वाचना देना, अयोग्य को शास्त्र पढ़ाना और योग्य को शास्त्र न पढ़ाना, आचार्य उपाध्याय से न पढ़कर अपने आप ही स्वाध्याय करना, अन्य afर्थिक अथवा गृहस्थ को पढ़ाना अथवा उससे पढ़ना, पासंस्था आदि शिथिलाचारियों को पढ़ाना अथवा उनसे पढ़ना ।
बीसवें उद्देश के प्रारंभ में सकपट एवं निष्कपट आलोचना के लिए विविध प्रकार के प्रायश्चितों का विधान किया गया है। जैसे कि सकपट आलोचना के लिए निष्कपट आलोचना से एक मासिकी अतिरिक्त प्रायश्चित करना पड़ता है। किसी भी दशा में षण्मासिकी से अधिक प्रायश्चित का विधान नहीं है । प्रायश्चित करते हुए पुनः दोष सेवन करने वाले के लिए विशेष प्रायश्चित की व्यवस्था की गई है ।
निशीथ सूत्र के इस परिचय से स्पष्ट हो जाता है कि इसमें केवल प्रायश्चित संबंधी क्रियाओं का वर्णन है । उन सभी क्रियाओं का इसमें समावेश कर दिया गया है, जो गुरु मासिक आदि प्रायश्चित प्रकारों के योग्य है । इस दृष्टि से निशीथ सूत्र अन्य आगमों से विलक्षण है । शेष रहे महानिशीथ और जीतकल्प छेद सूत्रों का अन्यत्र परिचय दिया जा रहा है ।
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