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________________ अध्याय ७ अंगबाह्य आगमों का परिचय पूर्व में यह बताया जा चुका है कि श्रुतकेवलियो, स्थविरों आदि द्वारा रचित ग्रंथ अंगबाह्य आगम है। उनके लिए अनंग प्रविष्ट, प्रकीर्णक, २ उपांग, ३ शब्द भी प्रयुक्त हए हैं। किन्हीं भी शब्दों द्वारा हम संबोधित करें, लेकिन इन सबका आशय यही है कि भगवान महावीर द्वारा अर्थरूप में भाषित और गणधरों द्वारा शब्द रूप में संकलित आचार आदि द्वादशांगों के अतिरिक्त उनके भावानुसार रचित अन्य ग्रंथ अंग वाहक आगम है। ___ नंदी सूत्र में अंगबाह्य आगमों का वर्गीकरण आवश्यक और आवश्यक अतिरिक्त इन दो विभागों में किया गया है । इनमें से आवश्यक के तो निम्नलिखित छह भेद बतलाए हैं-सामायिक, चतुर्विंशतिस्तव, वंदना, प्रतिक्रमण, कायोत्सर्ग और प्रत्याख्यान तथा आवश्यक व्यतिरिक्त के पुनः कालिक और उत्कालिक ये दो भेद करके दोनों के अनेक भेद होने का संकेत करके कुछ नाम भी गिनाए हैं । जैसे कि कालिक-उत्तराध्ययन, दशाश्रुतस्कंध, कल्प- बृहत्कल्प व्यवहार, निशीथ, महानिशीथ, ऋषिभाषित, जंबूद्वीप प्रज्ञप्ति, द्वीपसागर प्रज्ञप्ति, चन्द्र प्रज्ञप्ति, क्षुद्रिकाविमान प्रविभक्ति, महल्लिका विमान प्रविभक्ति, अंग चूलिका, वर्ग चूलिका, विवाह चूलिका, अरुणोपपात, वरुणोपपात, गुरुडापपात, धरणोपपात, वैश्रमणोपपात, वेलंधरोपपात, देवेन्द्रोपपात, उत्थान श्रुत, समुत्थानश्रुत, नागपरिज्ञापनिका, निरयावलिका, कल्पिका, कल्पावतंसिका, पुष्पिता, पुष्प चूलिका, वृष्णिदशा इत्यादि और इस इत्यादि का आशय स्पष्ट करने के लिए कहा है कि चौरासी हजार प्रकीर्णक भगवान ऋषभदेव आदि तीर्थंकर के संख्यात सहस्र प्रकीर्णक मध्यम तीर्थंकरों के और चौदह हजार प्रकीर्णक अन्तिम तीर्थंकर महावीर के हैं । अथवा जिसके जितने शिष्य औत्पातिकी, वैनयिकी, कर्मजा और पारिणामिकी इन चार प्रकार की बुद्धि से युक्त है, उनके उतने ही प्रकीर्णक होते हैं। उत्कालिक-दशवैकालिक, कल्पिका कल्पिक, चुल्ल कल्पश्रुत, महाकल्पश्रुत, औपपातिक, राजप्रश्नीक, जीवाभिगम, प्रज्ञापना, महाप्रज्ञापना, प्रमादाप्रमाद, नन्दी, अनुयोगद्वार, देवेन्द्रस्तव, तन्दुल वैचारिक, चंद्रविद्या, सूर्य प्रज्ञप्ति, पौरुषीमंडल, मंडल प्रवेश, विद्याचरणनिश्चय गणिविद्या, ध्यानविभक्ति, मरण विभक्ति, आत्म विशुद्धि १. नंदीसूत्र ४४ २. नंदी सूत्र ४४ ३. निरयावलिया पृष्ठ ३,४ तत्त्वार्थ भाष्य टीका पृष्ठ ३७ (७६)
SR No.002248
Book TitleJain Agam Sahitya Ek Anushilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year
Total Pages316
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size6 MB
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