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प्रस्तुत संपादनमें परीक्षाग्रंथ को छोडकर सिर्फ उद्देश-लक्षण-विभाग ग्रंथ का ही संग्रह है।
नयामृतम् का चतुर्थ पर्व है 'अनेकांत व्यवस्था प्रकरणम्'। इसके रचयिता भी महोपाध्याय श्रीयशोविजयजी गणिवर है । इसमें श्रीविशेष
आवश्यकभाष्यम् (श्री जिनभद्रगणिक्षमाश्रमण) और श्रीसन्मतितर्कप्रकरणम् (श्री सिद्धसेन-दिवाकरसूरिजी) के आधार पर नयोकी व्यवस्था की गई है । प्रस्तुत संपादन में उद्देश-लक्षण-विभाग ग्रन्थ के साथ अत्यल्प परीक्षा ग्रन्थ को स्थान दिया गया है।
वांचकवर्य श्री उमास्वातिजी रचित (तत्त्वार्थाधिगम सूत्र) 'नयाधिगमः सूत्र' नयामृतम् का पंचम पर्व है । प्रथमाध्याय के ३४-३५वे सूत्र और उनका भाष्यांश यहां उध्दृत किया है । . ___'नयोपदेश' ग्रंथ, नयामृतम् का षष्ठ पर्व है । इसके कर्ता भी महोपाध्याय श्री यशोविजयजी गणिवर है । १४४ श्लोकप्रमाण इस ग्रंथमें नयों का सूक्ष्म एवं सुविस्तृत विवेचन है । इस ग्रंथ की नयामृततत्त्वतरंगिणी नामकी स्वोपज्ञ वृत्ति नयो के आकर. ग्रंथ समान है । नयामृतम् में आचार्य श्रीभावप्रभसूरिजी कृत लघुवृत्ति के साथ नयोपदेश प्रगट हो रहा है । .. पू. आचार्य श्रीवादीदेवसूरिजी विरचित प्रमाणनयतत्त्वालोकः सूत्रका सप्तम नयपरिच्छेद, 'नयामृतम्' का सप्तम पर्व है । इसमें नय, और नयाभासको सोदाहरण समझाया है ।
नयामृतम् का अष्टम पर्व है 'नयप्रकाशस्तवः' (सवृत्ति) । इसके कर्ता -उपाध्याय श्रीधर्मसागरजी गणिवर के शिष्यरत्न पंडित श्रीपद्मसागरजी गणी . है । वि.सं. १६७३ में इस लघुग्रंथ की रचना हुई है । नयप्रकाशस्तवः ९ श्लोक प्रमाण है एवं वृत्ति ७४० श्लोक प्रमाण है । इस लघुकृति में प्रमुखतया नयो की व्याख्या एवं एकांत दृष्टि की संक्षेप में परीक्षा की गई है । यह ग्रंथ पहले श्री हेमचन्द्राचार्य ग्रंथावली (पाटण) नं. ६ की ओर से सं. १९७५ में प्रकाशित हुआ था । श्रावक पंडित श्रीवीरचंद्र और श्रीप्रभुदास ने इसका संशोधन किया था ।
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