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________________ नयामृतम् के नवम् पर्व में पं. श्रीदेवसेनगणि कृत 'नयचक्रालापपद्धतिः' नामक एक लघुलेखग्रन्थ समाविष्ट है। कर्ताने इस में सात नय, तीन उपनय एवं विविध दृष्टिकोण से नयो को सोदाहरण समझाया है । विशेषतः आध्यात्मिक दृष्टिकोण से व्यवहार एवं निश्चय नय की विवक्षा इस कृति का महत्त्वपूर्ण अंश है । एक प्राचीन हस्तलिखित प्रत में यह कृति उपलब्ध हुई है । श्रीमद् देवचन्द्रजी रचित 'नयचक्रसारः' इस ग्रन्थ का नयाधिकार 'नयामृतम्' का अंतिम पर्व है । श्रीविशेषावश्यकभाष्यम् (श्री जिनभद्र गणिक्षमाश्रमण) तथा स्याद्वाद-रत्नाकर (श्रीवादीदेवसूरीश्वरजी म.). में वर्णित नय के स्वरूप का इसमें विवरण किया गया है । . .. इस प्रकार, सात प्रकार के नयों का सार समझने के लिये नयविषयक दस ग्रन्थों का अमृत प्रस्तुत संपादन में समाहित किया है । इस सम्पादन को गीतार्थमूर्धन्य, धर्मतीर्थप्रभावक पूजनीय आचार्यदेव श्रीमद् विजय मित्रानंदसूरीश्वरजी म.सा.ने अपनी शास्त्रपूत सूक्ष्मैक्षिका से संशुद्ध किया है और अपनी और से 'प्राक्कथनम्' प्रेषित करके ग्रंथ का गौरव बढ़ाया हैं । . यह छोटा संग्रह नयसागर में प्रवेश करनेवालों को उपकारक बने और नयों के बोध द्वारा तत्त्वो का यथार्थ निश्चय करके सभी अपनी दृष्टि निर्मल बनाये यही शुभकामना । वैराग्यरतिविजय । आराधना भवन मंचर (पूणे) आषाढ बहुला १३ + १४. (गुरुदेव की दसवी स्वर्गारोहण तिथि) XIV ..
SR No.002246
Book TitleNayamrutam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVairagyarativijay
PublisherBherulalji Kanaiyalalji Kothari Religious Trust
Publication Year2002
Total Pages164
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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