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________________ प्रतिक्रमण विधि संग्रह के कायोत्सर्ग के स्थान भवनदेवी का कायोत्सर्ग और अजितशांतिस्तव का पाठ। संबुद्धाक्षामणों में चातुर्मासिक में ५ और वार्षिक में ७ को खमाना । पाक्षिक कायोत्सर्ग में १२ उद्योतकरों का चिन्तन, और सांवत्सरिक कायोत्सर्ग में ४० उद्योतकर और १ नमस्कार का चिन्तन करना चाहिए ।।६-८॥ देवसिक प्रतिक्रमण सूत्र पढ़ने पर क्षमाश्रमणपूर्वक शिष्य कहता है-"देवसिक आलोचना कर प्रतिक्रमण किया है अब भगवन इच्छानुसार प्राज्ञा दीजिये, पाक्षिक मुहपत्ति को प्रतिलेखना करता हूँ।" बाद मुहपत्ति प्रतिलेखना कर दो वन्दनक दे के कहे-- "हे भगवन ! इच्छापूर्वक आदेश कीजिए मैं संबुद्धाखामणक द्वारा पाक्षिक के भीतर जो कुछ अपराध हुए हैं। उनको क्षमाने के लिये खड़ा हूं और मेरी इच्छा से क्षमाता हूं। पन्द्रह दिनों, पन्द्रहरात्रियों में जो कुछ भी अप्रीति आदि हुए हों" इत्यादि अब्भुट्टियो सूत्र का पाठ बोले, प्रथम गुरु स्थापनाचार्य को क्षमावे, बाद में सात आदि मुनियों की संख्या हो तो गुरु से लेकर ५ तक को क्षमाना । अगर ७ से कम हो तो ३ को खमाना, फिर उठकर “इच्छाकारेण संदिसह पाक्षिक आलोचना करूं, हे भगवन आदेश दीजिये, पाक्षिक अतिचारों की आलोचना करूं ?" गुरु का आदेश होने पर कहे--"इच्छं आलोएमि०" "जो मे पक्खियो०" इत्यादि पाठ पढ़कर अतिचारों की आलोचना करे। आलोचना करने के बाद "सव्वस्सवि० पक्खिय०" इत्यादि समुदाय के पढ़ने पर गुरु आदेश दे प्रतिक्रमह." अर्थात,-'प्रतिक्रमण करो'। फिर गुरुवचन"चउत्थेण." चतुर्थ भक्त इत्यादि होने पर तस्स मिच्छामि दुक्कडं अर्थात् शिष्य कहे-मेरा वह दुष्कृत मिथ्या हो। बाद में वन्दन देने
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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