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प्रतिक्रमण विधि संग्रह
जान लेना चाहिए । अब प्राभा तक प्रतिक्रमण की विधि कहते हैं।
रात्रिक प्रतिक्रमण विधि--
सामायिक सूत्र पढ़कर चारित्र शुद्धि के लिए प्रथम कायोत्सर्ग २५ श्वासोच्छ वाम परिमित करते हैं। कायोत्सर्ग पार कर शुद्ध चारित्रवन्त ऊपर चर्तु विशतिस्तव पढ़कर दर्शनशुद्धि के निमित्त दूसरा २५ श्वासोच्छ वास परिमित कायोत्सर्ग करते हैं । विधि से. कायोत्सर्ग पारकर बाद में श्रुतस्तव पढ़ते हैं और उपयोगपूर्वक अनियत परिमाण कायोत्सर्ग करते हैं। प्रादोषिक प्रतिक्रमण में पढ़ी हुई अन्तिम स्तुति से लेकर अधिकृत कायोत्सर्ग पर्यन्त की तमाम चेष्टाओं का इस अनियत परिमाण वाले तीसरे कायोत्सर्ग में रात्रिक अतिचारों का चिन्तन होता है। अन्तिम कायोत्सर्ग में कर्त्तव्य तप का चिन्तन करते हैं। आज मैं क्या तप करूं ? छः मासिक तप कर सकता हूँ ? नहीं, एक दिन कम इत्यादि कर सकता हूँ ? नहीं। इस प्रकार एक २ दिन घटाते हुए यावत् पौरुषी अथवा नमस्कार सहित जो प्रत्याख्यान करना हो वह मन में धारण करके कायोत्सर्ग विधिपूर्वक पारे। ऊपर सिद्धस्तव पढ़कर पूर्ववत् आगे प्रतिक्रमण करे। क्षामणक करके सामायिकपूर्वक कायोत्सर्ग करे और उसमें तप चिन्तन करते हुए अपनी स्थिति का विचार करे। गुरु ने हमको किस काम के लिये नियुक्त किया है - यह सोचकर गुरु-निर्दिष्ट कार्य की हानि न हो वैसा पाण्मासिक प्रादि क्रम से उतरते हुए जो तप शक्य हो वहाँ तक नीचे उतरकर हृदय में धारण करले, फिर कृतिकर्म करके गुरु के पास अपने २ चिन्तित तप का प्रत्याख्यान करें।
(पंचवस्तुक पत्र ७२-८२ पर्यन्त)