________________
३२]
प्रतिक्रमण विधि संग्रह ... यहाँ प्रसंग से रात्रिक प्रतिक्रमण की विधि कही जाती हैं- पक्ष, . चातुर्मास, सांवत्सरिक पर्वो में यथाक्रम चतुर्थ, षष्ठ, अष्टम, सप्त . चैत्य वंदन, परिपाटी और श्रावकों को धर्मकथा कहनी चाहिये । रात्रिक प्रतिक्रमण विधि--
प्रथम सामायिक सूत्र कहकर चारित्र विशुद्धि के निमित्त २५ श्वासोच्छ्वास परिमाण कायोत्सर्ग करते हैं। दर्शन विशुद्धि निमित्त.. ऊपर चतुर्विंशतिस्तव पढ़ते हैं और २५ श्वासोच्छ वास परिमाण. कायोत्सर्ग करते हैं। नमस्कार से कायोत्सर्ग पार कर श्रुत ज्ञान. . विशुद्धि निमित्त श्रुतज्ञानस्तव पढ़ते हैं, उसमें प्रादोषिक स्तुति आदि . से लेकर अधिकृत कायोत्सर्गपर्यन्त तक के अतिचारों का चिन्तन करते हैं और नमस्कार से कायोत्सर्ग पूरा कर सिद्धों की स्तुति . कहकर पूर्वोक्त विधि से वन्दना करके आलोचना, करते हैं, फिर सामायिकसूत्र पूर्वक प्रतिक्रमण करते हैं। प्रतिक्रमण सूत्र के अन्त में वन्दनपूर्वक क्षामणा करते हैं फिर कृतिकर्म करके सामायिक पूर्वक कायोत्सर्ग करते हैं। उसमें चिन्तन करते हैं-हमको गुरु ने किस काम में नियुक्त किया है उसका विचार करके तप स्वीकार करेंगे। जिस प्रकार के तप से गुरु के नियोग की हानि न हो, फिर वे तप के सम्बन्ध में विचारते हैं।
क्या छः मास पर्यन्त उपवास करें ? यह शक्य नहीं है। एक दिवस कम छ:मास की तपस्या करें? यह करने की भी शक्ति नहीं है। इस प्रकार उतरते-उतरते उन्तीस दिन कम छःमासी तप करें उसकी शक्ति के अभाव में ५ मास, ४ मास, ३ मास, फिर २ मास
और १ मास क्षपण (तप) तक का चिन्तन करें। मासिक तप की शक्ति के अभाव में एक एक दिन कम करते हुए १४ दिन कम करे,