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________________ १८] प्रतिक्रमण विधि संग्रह 97 २५ श्वासोच्छ् वास का कायोत्सर्ग करे और नमस्कार से पूरा करे । : "पुक्खर वर दीवड्डे XX X त्तम तिमिर पडल विद्ध' सणस्स XXX जाति जरा मरण XXX सिद्ध भो पयप्रोमो जिण मंते नदी सदा संजXXX अस्स भगवतो वंदण वत्तियाए जाव वोसिरामि X Xx" बोलकर २५ श्वासोच्छवास परिमित कायोत्सर्ग करें। नमस्कार से कायोत्सर्ग पारे । सिद्धाणं, बुद्धाणं XXX जो देवाण विदेवो XX X एक्कोवि नक्कारो XXX ये तीन स्तुतियाँ पढ़ते हैं, बाकी की गाथा में यथेच्छा से पड़ते हैं कोई नहीं पड़ते हैं । बाद में संसार के निस्तारक प्राचार्य को वंदन करे "एते तिण्णिी सिलोगा भण्णन्ति ॥ सेसा जहिच्छाए, " ततो पुण संसार नित्थार गाणं आयरियारणं वंदरणं × × ×कातूरणं (वंदनं कृत्वा) उक्कुंडग्रो 'उकंड़ बैठकर' आचार्य के सम्मुख विनय से रचित मस्तकाञ्जलि पुट होकर जब पहले आचार्य एक स्तुति पढ़ले बाद में वह पढ़े “अण्णहा अविएश्रो भवति " आयरिया वा किंचि अत्थपदं पच्छितं तरा लोकाय तो मा ताव आयरिया कस्सइ अतियरंमेरठवणं च विस्सरन्ति सांरयंति ताओ य ती एक सिलोगादि वड्ढन्तियाओ पद अक्खरादिहिं वा सरेण वा वड्ढन्तेण तिहि भणित्तणं ततो पादोसियं करेंति । एवं ता सायं ॥ ऐसा न होने से अविनय होता है। आचार्य कुछ अर्थ विशेष कहना चाहते हों अथवा प्रायश्चित विशेष कहना चाहते हों अथवा आचार्य किसी के लिये अतिचार की मर्यादा स्थापित करना चाहते हों, अगर भूली हुई कोई बात कहना चाहते हों तो कह सकें । स्तुतियाँ एक श्लोकादि वर्धमान पद अक्षर वाली, अथवा: - वर्धमान स्वर से तीन स्तुतियाँ पढ़ कर फिर प्राक्षेषिक काल ग्रहण आदि का
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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