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प्रतिक्रमण विधि सग्रह तिथि किन-किन महीनों में घटती है, वह नीचे बताते हैं
आषाढ कृष्ण पक्ष में भाद्रपद कृष्ण पक्ष में, पौष कृष्ण पक्ष में, फाल्गुन कृष्ण पक्ष में और वैशाख कृष्ण पक्ष में क्षय तिथियाँ आती हैं। किस महीने में कितने अंगुल छाया का दिवस के चतुर्थांश में
प्रक्षेप करने से उस महीने में पौरुषी पूर्ण होती है,वह बताते हैं
ज्येष्ठ, आषाढ और श्रावण के दिवस के चतुर्थ भाग में छः अंगुल. का प्रक्षेप करने में प्रतिलेखना का समय होता है । इसी प्रकार भाद्रपद,
आश्विन और कार्तिक मास के दिन .चतुर्थाश में आठ अंगुल का : प्रक्षेप करने से पौरुषी आती है। मार्गशीर्ष, पौष और माघ इन तीन महीनों के दिन चतुर्थाशों में दश अंगुलों का प्रक्षेप करने से पौरुषी आती है और चतुर्थ त्रिक अर्थात् फाल्गुन, चैत्र और बैशाख महीनों के दिन चतुर्थाश में आठ अंगुलों का प्रक्षेप करने से इन तीन महीनों की पौरुषी पूर्ण होती है । अव रात्रि कृत्यों का काल विभाग बताते हैं
विचक्षण साधु रात्रि को भी चार विभागों में बांट कर उन चारों में उत्तर गुणों की साधना करे ।
प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय, द्वितीय पौरुषी में ध्यान और तृतीय पौरुषी में निद्रा फिर चतुर्थ पौरुषो में स्वाध्याय करे। ... रात्रि में शयन विधि इस प्रकार है--
रात्रि का प्रथम प्रहर पूर्ण होने पर गुरु के पास जाकर शिष्य वन्दनापूर्वक कहे 'क्षमा श्रमण ! पौरुषी संपूर्ण हो गई है रात्रिक संस्तारक को आज्ञा दीजिये।" गुरु कहे “तहत्ति ।"