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प्रतिक्रमण विधि संग्रह
" निश्रा में रहे इसका नाम 'उपसम्पदा' सामाचारी है। इस प्रकार श्रम को 'दशविध' सामाचारी बताई है ।
दशविध सामाचारी का निर्देश करके अब ओघ "सामाचारी" का निरूपण करते हैं ।
सूर्य उदय के बाद दिन के प्रथम चतुर्थ भाग में उपकरणों की प्रतिलेखना कर गुरु को वन्दनपूर्वक हाथ जोड़कर पूछे 'भगवन् अब मुझे क्या क्या करना चाहिये ? आपकी इच्छानुसार मुझे किसी भी कार्य में नियुक्त कीजिये वैयावृत्य में अथवा स्वाध्याय में ।' यदि गुरु वैयावृत्य में नियुक्त करे तो ग्लानि लाये बिना वैयावृत्य करे और सर्वदुःख से मुक्त करने वाले स्वाध्याय में नियुक्त करे तो अग्लानि से स्वाध्याय करे । इस प्रकार ओघ सामाचारी के मौलिक कतव्यों के निर्देश करके अब समय का विवेक बताते हैं ।
प्रथम औत्सर्गिक दिनकृत्य बताते हैं
दिवस के चार भाग करके चतुर 'भिक्षु' उन चारों ही दिन विभागों में उत्तर गुणों का साधन करे । प्रथम पौरुषी में स्वाध्याय ' करे, द्वितीय पौरुषी में सूत्रार्थ चिन्तन रूप ध्यान करे। तीसरी पौरुषी में भिक्षाचर्या करे और चौथी पौरुषी में फिर स्वाध्याय करे । पौरुषी ज्ञान का उपाय --
आषाढ मास में दो पग परिमित छाया रहने पर, पोष में चार पग छाया रहने पर, चैत्र तथा आश्विन महीनों में तीन पग छाया रहने पर पौरुषी होती है ।
सात अहोरात्रों में एक अंगुल छाया बढ़ती घटती है । एक पक्ष में दो अंगुल छाया बढ़ती घटती है और मास में चार अंगुल 'छाया' बढ़ती घटती है ।