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________________ [१०७ प्रतिक्रमण विधि संग्रह • कायोत्सर्ग करे, कायोत्सर्ग पार करके ऊपर उद्योतकर पढ़के मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे और वन्दनक देके समाप्तिक्षामणा कर चार स्तोभ वन्दनों से तीन तीन नमस्कार कर नत मस्तक होकर पढ़े, आगे शेष देवसिक प्रतिक्रमण करे । विशेष यह है कि श्रुत देवता की स्तुति के बाद भवन देवता का कायोत्सर्ग ८ श्वासोच्छ्वास परिमति कर उसकी स्तुति बोले या सुने, स्तव के स्थान में अजित शांति स्तव पड़े। इसी प्रकार चातुर्मासिक, सांवत्सरिक प्रतिक्रमणका नाम बोले । पाक्षिक कायोत्सर्ग में जहां १२ उद्योतकरों का चिन्तन होता है वहां चातुर्मासिक में २० का और सांवत्सरिक में ४० उद्योतकर १ नमस्कार का चिन्तन होता है तथा पाक्षिक में ५ साधुत्रों में से ३ को सबुद्धक्षामणा किया जाता है। चौमासी में ७ में से ५ को और सांवत्सरिक में आदि में से ७ को क्षमाया जाता है । २ साधु शेष अवश्य रहने चाहिये । तथा सांवत्सरिक में भवन देवता का कायोत्सर्ग नहीं किया जाता, न स्तुति बोली जाती है। अस्वाध्यायिक का कायोत्सर्ग नहीं किया जाता । रात्रिक देवसिक में 'इच्छामोऽणुसद्धि" पढ़ने के बाद गुरु के एक स्तुति कहने बाद मस्तक पर अंजलि करके "नमो खमा समणाणं' यह कहकर अथवा सिर पर हाथ जोड़कर अन्य साधु वर्धमान ३ स्तुतियां बोलते हैं, तब पाक्षिक में गुरुद्वारा तीनों स्तुतियां बोलने के बाद शेष साधु वर्धमान ३ स्तुतियां बोलते हैं। यह पाक्षिक प्रतिक्रमण की विधि हई। प्रतिक्रमण में प्रक्षेपों की परम्परा आचार्य जिनप्रभसूरिजी कहते हैं-देवसिक प्रतिक्रमण में प्राय. श्चित्त का कायोत्सर्ग करने के बाद क्षुद्रोपद्रव ओहडा वणिय शत
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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