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________________ १०६] प्रतिक्रमण विधि संग्रह पातिक प्रतिक्रमण विधि-- पाक्षिक प्रतिक्रमण चतुर्दशी को करना चाहिये । उसमें “अब्भुट्ठियोमि पाराहाणाये" इत्यादि सूत्र पर्यन्त दैवसिक प्रतिक्रमण करके फिर दो क्षमाश्रमणों से पाक्षिक मुहपत्ति की प्रतिलेखना करे । पाक्षिक नाम से वन्दनक देकर संबुद्धक्षामणा करके खड़ा होकर . पाक्षिकालोचना सूत्र से “सव्वस्सविपक्खिय” पर्यंत पढ़के वन्दनक देकर कहे "देवसिनं आलोइयं पडिक्कतं पत्तेयखामणेणं अब्भुट्ठियोहं ' अन्भिन्तरपक्खियं खामेमि" यह कहकर यथारात्निक क्रम से साधु । और श्रावक खमावें । मिच्छामि दुक्कडं देकर सुख तप पूछे । सुख पाक्षिक साधुओं को ही पूछे श्रावकों को नहीं। बाद मंडली में यथा स्थान खड़े होकर वंदन देकर कहे "देवसिधे आलोइयं पडिक्कतं पक्खियं पडिक्कमावेह" तब गुरु कहे सम्मपडिक्कमह यह कहने पर शिष्य "इच्छ" कह कर सामायिकसूत्र और कायोत्सर्ग सूत्र पढ़कर क्षमा श्रमण देकर पक्खियसुत्तं संदिसावेमि, दूसरा क्षमा श्रमण देकर "पक्खियसुत्तं कढ्ढेमि" । इस प्रकार आदेश पूर्वक तीन नमस्कार पढ़कर पाक्षिक प्रतिक्रमण सूत्र पढ़े, अन्य सुनने वाले कायोत्सर्ग में सुनें, सूत्र के बाद तस्सूत्तरी करणेणं" इत्यादि पढ़कर कायोत्सर्ग में खड़े रहे। सूत्र की समाप्ति में खड़ा पढ़ने वाला तीन नमस्कार पढ़के बैठे और नमस्कार सामायिक सूत्र तीन बार पढ़कर "इच्छामि पडिक्कमिउ जो मे पक्खिनो अइयारो कओ" इत्यादि सूत्र बोलकर उपविष्ट प्रतिक्रमण सूत्र पढ़े, सूत्र के उपान्त्यमें अब्भुढिओमि आराहणाए इत्यादि पाठ बोल कर क्षमाश्रमण देके मूलगुण उत्तरगुण"मइयार विसोहणत्थ करेमि काउस्सगं०" यह कहकर करेमि भन्ते०, इच्छामि ठामि काउस्सग्गं इत्यादि पाठ पढकर बारह लोगस्स का
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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