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________________ [१० १ प्रतिक्रमण विधि संग्रह तीसरे कायोत्सर्ग में यथाक्रम रात्रिक अतिचारों का चिन्तन कर कायोत्सर्ग पारे और ऊपर सिद्धस्तव पढ़कर सण्डास प्रमार्जन करके बैठे ||२७|| पूर्वोक्त विधान से ही मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना कर वन्दना कर आलोचना सूत्र पढ़े। फिर वन्दनापूर्वक "अब्भुट्ठियोमि" सूत्र से क्षामणक करे ||२८|| · इस कायोत्सर्ग में चिन्तन करे कि जिस तप के करने से मेरे योगों की हानि न हो उस तपस्या को स्वीकार करू । षाण्मासिक तप करूँ तो षाण्मासिक तप करने की शक्ति नहीं है, एक एक दिन कम करते हुए २६ दिन कम छः मास करूँ ऐसा करने की भी शक्ति नहीं है । क्या, पञ्च मास करूँ ? यह करने की भी शक्ति नहीं है । इसी प्रकार ४ मास ३ मास २ मास और १ मास करने की भी शक्ति नहीं है ॥२६-३० । ♡ एक मास में से भी एक एक दिन कम करते हुए १३ दिन कम करने का चिन्तन करे । उसके बाद ३४ भक्त ३२ भक्त यावत चतुर्थ भक्त तप करने का चिन्तन कर उपवास करने की शक्ति भी न हो तो आयम्बिल आदि का चिन्तन करता हुआ पौरुषी अथवा नमस्कार सहित तप तक नीचा उतरे ||३१|| अपने लिये जो तप शक्य हो उसको हृदय में धारण करके कायोत्सर्ग पारे और बैठकर मुखवस्त्रिका की प्रतिलेखना करे । वन्दनक देकर निष्कपट भाव वाला होकर कायोत्सर्ग में चिन्तित तप का विधिपूर्वक प्रत्याख्यान करे ||३२|| फिर " इच्छामो अगुसट्ठि" यह बोल कर बैठके धीमें शब्द से शक्रस्तवादि पढे और चैत्य वन्दन करे ॥ ३३॥
SR No.002245
Book TitlePratikraman Vidhi Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherMandavala Jain Sangh
Publication Year1973
Total Pages120
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, Vidhi, & Paryushan
File Size8 MB
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