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प्रतिक्रमण विधि संग्रह
"इच्छामि पडिक्क मिउं जो मे पक्खिओ०" इत्यादि बोलकर क्षमा श्रमण देकर कहे - "पाक्षिक सूत्र सांभलु ।” फिर यथाशक्ति कायोत्सर्गस्थित सर्व साधु सांभले, सूत्र पूरा होने पर बैठ कर निविष्ट प्रतिक्रमण सूत्र पढ़े, सूत्र की समाप्ति में "करेमि भंते ० " इत्यादि पूर्वक कायोत्सर्ग करके बारह उद्योतकरों का चिन्तन करे । कायोत्सर्ग पार कर चतुर्विंशतिस्तव पढ़ के मुखवस्त्रिका प्रतिलेखनापूर्वक वन्दनक देकर कहे - "इच्छाकारेण संदिसह भगवन् अब्भुट्ठियोमि समाप्तिखामपेण अब्भितर पाक्खि खामे उं०" इत्यादि । क्षामणा कर उठकर कहे - " इच्छाकारेण संदिसह भगवन् पक्खी खामणां खामउ" गुरु के आदेश देने पर कहे - 'इच्छ' बाद साधु क्षमाश्रमणपूर्वक भूमि पर सिर नवांकर, "इच्छामि खमासमणो पिश्रं च मे० " इत्यादि चार खामणक बोले । श्रावक ! एक नमस्कार भरणे । बाद में " इच्छामो अरणुसट्ठि०” कह कर पहले की तरह आगे 'दैवसिक' प्रतिक्रमण करे । (प्राचारविधि सामाचारी पत्र १० - ११ )
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जिनवल्लभगणिकृता प्रतिक्रमण सामाचारी
"सम्मं नमिउ देविन्द - विन्दवंदियपयं, महावीरं । पडिकमण समायारि, भणामि जह, संभरामि श्रहं ॥१॥ पंच - विहायार - विसुद्धि, हेउमिह साहु सावगो वा वि । किम सह गुरुणा, गुरु विरहे कुणइ इक्कोवि ॥ २ ॥