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मन्त्रकल्प संग्रह
. ॐनम इंद्राग्नि वज्राग्नि बंधामि वंधउसि विश्वानलमाचल ठः ठः ठः स्वाहा वार २१ अथवा २ पवार कंजीकमभीमन्त्र्य धारावाददीयते अग्निस्थंभा ॐनमो श्रीपार्श्वनाथाय ज्वल २ प्रज्वल २. . महाज्ञि स्तंभय २ उक्तो ठ ठ ठः स्वाहा वार २१ अभिमंत्र्य धारा दियते अग्नि उल्हाइ ॐ ह्रीं यरलव अर्हजीनार्थनसमये १०८ जापक्रीयते लक्ष्मीप्राप्ती ॥२२॥ अठुत्तरि सयगणजडि बोलनीर कंटय
षीति सिमंति चार संतनालय धूय संमय । तह अडसय कणवीर पुफनि अठाणी जलणि
तह सगवारिहि पइगीहमीजाइ तुह झाणहि ।।२३।। सिप्रचनरविकरणयसंकंटि कंथेरि कंदय
___एकवीन्नि गोरवीर पाणि कामणिसिसूप्पय वरपंडुर खूणिसाणरइजडजोगहि सत्थह नेमिपवंधह
होइ नाह तह तुह गुण धूतहं ।।२४।। इच्छं ॥ भेषज यंत्र तंत्र कालि त सन्मंत्रस्र श्वनीकृत्वा श्री मुनिसुन्दर दुत्य उहं अश्र हसुदरां ह्रि युगलि सेवासुखं प्राप्तई इति श्री ऋषभदेव स्तवनं समाप्तम् ॥
षजरी टां १०८ बोलीना कांटा १०८ एकत्र कृत्वामन्त्रण सप्तवारो वला माहि मुक्ता ज्वलातक खडा मुषं मुद्रिए तेनालु धूमोगूद्यजथा याति तथा क्रीयते अभिमन्त्री यं ॐनमो षोडियाषेत्रपालहाथकपाल बावरिकेसगलइरुंडमाला अहुठसारमनुहतणा आभरण वज्रागी वेसणनी स्वास पासण कलिकलंत चालइ फेत कारमेलइ प्रावतउ कीसिपरीजाणिई गाजन्ति गडयगडति गाडंति झालंबि मेघजीमा डकन्ति बिज जीम चमकंति मात्रभो रडति. भीरडन्ति परंति हाड गुडकरडन्ति रुधीर सउसति मुयामडाच चउंति चाडन्ति