SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 75 प्रभूवीर एवं उपसर्ग तभी आज भी जो अच्छाई है वहसंभव रू पसे देखी जा सकती हैं। । अब अपनी मूल बात तो प्रभु महावीरदेव विषय में है। उपसगी में भी संगम के उपसर्गों की बात हम जान चुके। हमलोग जानते हैं कि प्रभुको साढे १. गोवालीया के द्वारा प्रभु के कान में कील ठोका जाना २. खरक वैद्य द्वारा कान से कील नीकालना । बारह वर्ष में आये हुए उपसर्गों में जघन्य-मध्यम और उत्कृष्ट भेद करने पर कठपूतना व्यंतरी का शीतोपसर्ग जघन्य में उत्कृष्ट, कालचक्र डाला गया वह मध्यम में उत्कृष्ट और कान में गोवालिया द्वारा डाले गये कील को निकालना जिससे मुंह से भी चीख निकल पड़ी थी, वह उत्कृष्ट में उत्कृष्ट गिना गया है। ऐसे परीसहों उपसर्गों को शांत-प्रशांत उपशांत होकर प्रभु ने गोशाला की तेजोलेश्या । वैशाख शुक्ल दशमी के
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy