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किया था। खूब संक्षेप में प्रभु का पूर्वजीवन देखकर संगम की बात हमने यहाँ की। क्या विचार किया महानुभावों ?
छद्मस्थकाल में भी प्रभु ने कैसे उत्कट वैराग्य के बल से देहातीत अवस्था का अनुभव किया होगा ? प्रभु सुखी होंगे कि दुःखी ? सुख राग में हैं या वैराग्य में ? सचमुच देहातीत अवस्था आ जाय तो ? लेकिन आपका क्या विचार है ? शरीर में ही सुख मानकर बैठे रहे तो ये वैराग्य की बात किस काम में आये ? श्रीतीर्थंकरदेवों के अद्भुत चरित्र हमारे दोषों और दुर्गुणों को दबाकर जला दे ऐसा है।
देव एवं वर्तमान काल संगम के उपसर्ग काल में दूसरे भी सुरेन्द्र एवं देव कितने उद्विग्न रहे होंगे ? उपसर्गों की झरी लगी, तब प्रभु अपने ध्यान में निश्चल रहे । संगम के जाने पर एक के बाद एक इन्द्र महाराज और देवगण उन-उन स्थलों पर आकर शाता पूछकर जाते हैं एवं केवलज्ञान में कितना देर है यह कहते जाते हैं। हम लोगों को होगा कि इतने समय तक ये सभी कहां गये थे। लेकिन अवश्यंभावी को कोई अन्यथा नहीं कर पाता । प्रभु को ये सभी सहन करना ही था। देव भी प्रमाद में आ जाय । आज अपने लोग कहते हैं न कि शासन पर इतनी इतनी आपत्तियां है, महापुरुषों को सहन करना पड़ता हैं, देव क्या करते होंगे ? लेकिन भाग्यशालियों ये देव क्या करेंगे । ये अन्ततः तो संसारी जीव ही हैं। विषय कषाय की सामग्री के बीच जी रहे हैं। कर्म और कषाय अभी बैठा है। प्रमाद के स्थान जैसी सुख की शिला गले बाँध रखी है। निर्मल सम्यग्दर्शन होने पर भी और सम्यक्त्व को निर्मल बनाये रखने का उसमें भाव होने पर भी जबरदस्त अविरति कर्म लेकर बैठे है । वे क्या कर सकते हैं ? दूसरे क्रम में वे ज्ञानी भी हैं। ज्ञान से भरतक्षेत्र के भावी और जीवों की दुर्दशा जानते है। इससे जितनी उपेक्षा करने जैसी लगे उतनी उपेक्षा करते हैं अथवा कालक्षेप करते है या जीवों की पात्रता देखा करते हैं । जो हो वही सही । ज्ञानी ही कह सकते हैं। परन्तु इतना अवश्य ही मानना पड़ेगा कि प्रगट-अप्रगट रूप से आज भी देवों का सहयोग नहीं है ऐसा नहीं है। नहीं तो, दुर्जन एवं दुष्टों द्वारा इतने सताने पर भी रेत में नाव चलाने जैसा कठिन कार्य शासन चलाने का काम महापुरुष ही कर सकते हैं, वह चाहे किसी भी तरह पूर्ण हो ? विशेष लाभ न दिखने पर ऐसे ज्ञानी देवगण नहीं भी आये परन्तु आवश्यकता के अनुसार आज भी रक्षा आदि करते रहते हैं,
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प्रभूवीर एवं उपसर्ग