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________________ छ महिनो से बिमार लोहारने कुश्चित बुद्धि से घन उठाया, ईन्द्रने प्रभु की भक्ति व्यकत की। चाहिये ? उसे इसकी चिन्ता सताने लगी।वहशोचता है कि ये महासत्वशाली है। अनुकूल उपसर्गों से भी चलायमान नहीं हुए तो अब इन्हें ज्यों का त्यों छोड़कर देवलोक में चला जाऊँ? नहीं...नहीं...ऐसे कैसे जाया जाय? लम्बे समय तक उपसर्ग करते हुए उसे कदाचित् क्षोभ हो जाय ऐसा विचारकर आहार-पानी बिना ग्राम-नगरों में विचरण करते प्रभु के पिछे लग गया । चला न जा सके ऐसा धूल का ढेर लगा दिया । सुभूम, सुक्षेत्र, मलय,,हस्तिशीर्ष, ओसली, तोसली आदि सन्निवेशों में ये अधमदेव जो उपसर्ग किये उसे कहते हुए भी पार न लगे ऐसा है। ऐसा कहकर ग्रन्थकार कहते हैं कि इसलिए उसका उल्लेख यहाँ नहीं किया है।अन्य शास्त्रों से स्वयं जान लेना। संगम जैसे पर भी दया ऐसे उपसर्गों से अचलायमान प्रभु ग्रामादि के बाहर काफी समय व्यतीतकर व्रजग्राम के गोकुल में छह महीना के उपवास का पारणा करने के लिये पधारे । अब वह उपसर्ग नहीं करेगा वह चला गया होगा। ऐसा शोचकर गोचरी के लिये पधारे तो जहँ-जहाँ प्रभु जाते हैं वहाँ-वहाँ अकल्प्यपना करके रखने लगा। प्रभु ने ज्ञान का उपयोग करके देखा तो सब समझ गये इसलिये बीच में से ही वापस आ गये।तब संगमदेव क्षोभ पा गया।वह विचारता है कि 72 प्रभूवीर एवं उपसर्ग
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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