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________________ प्रभूवीर एवं उपसर्ग भी प्रभु को निश्चल देखकर अनुकूल उपसर्ग करने का निर्णय करता है । अनुकूल उपसर्ग प्रतिकूलता सहन करनी सरल है, अनुकूलता मिले तब शुभपरिणाम या ध्यान की एकाग्रता कायम रखनी मुश्किल है इसलिये उसने अब अपना निर्णय बदला । २०. देदीप्यमान विमान तैयार करके दिव्य सामानिक देव की ऋद्धि को बताते हुए कहता है कि 'हे महर्षि ! आपके सत्व से तुष्ट हुआ हूं, आपके तप, क्षमा और बल एवं प्रारंभ की हुई प्रतिज्ञा निर्वाह की अटलता, जीवन से निरपेक्षता और जीवरक्षा का भाव आपमें अद्भुत है। अब ये तप-जप छोड़ दिजीये, यदि आप कहें तो इसी शरीर से सुखपूर्ण देवलोक में ले जाउं अथवा एकांतिक सुख से भरपूर मोक्ष में पहुँचा दूँ। कहे तो यहीं राजाधिराज बना दूँ । जरा भी क्षोभ न रखियेगा । जो चाहिये वह बोल दिजिये लेकिन प्रभु को मौन एवं ध्यान में स्थिर देखा तब देव ने विचारा कि काम का शासन सर्वश्रेष्ठ है इसे कोई जीत सकता नहीं, महामुनियों के भी चित्त को हलचल कर देता है अतः संगमदेव के द्वारा प्रभु पर छोडा गया कालचक्र | 71 काम का मुख्य शस्त्ररूप कामिनियाँ उसके पास भेजूं ऐसा विचारकर एक साथ सभी ऋतुएं तैयारकर एकदम मादक वातावरण खड़ा कर दिया । देवांगनाओं को पूरी साज-सज्जा के साथ भेज दिया । स्त्री की जाति एवं मुक्त वातावरण फिर क्या बाकी रखे ? अनेक विकृत कार्यों को करने पर भी जगद्गुरु जब लेशमात्र भी विचलित नहीं हुए और सूर्योदय हुआ । ये सभी उपसर्ग मात्र एक रात की घटना है । हर प्रकार से संगम हार गया तो शोचने लगा कि अब क्या करना
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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