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प्रभूवीर एवं उपसर्ग .
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पूज्यश्रीः कब और किसलिये ली यहनहीं जानते ? याद करो, प्रभुको केवलज्ञान होने के बाद की यह बात है। गोशाला ने प्रभु पर तेजोलेश्या छोड़ी थी। भगवान को लहु का अतिसार हुआ था। सोलह देश को जला देनेवाली तेजोलेश्या भगवान के शरीर को परिक्रमा करके गोशाला के शरीर में घुस गयी । गोशाला को सात अहोरात्र( दिन-रात) तक वेदना हुई, पश्चाताप से समकीत पाया, थोड़े ही समय में परलोक पहुंचा। भगवान भी अब जायेंगे। ऐसा समाचार फैला हुआ था। उस समय सिंह नामक अनगार यह सुनकर सिसकते-सिसकते रोने लगते है। भगवान उसे बुलाकर समझाते हैं। स्वयं वह दीर्घकाल तक जीवन्त रहनेवाले हैं इस प्रकार समझाया।लेकिन वे तो यही जिद्द लेकर बैठे थे कि प्रभो ! आप दवा लीजिये तो मैं आश्वस्त होउंगा, तब प्रभु ने बताया कि जाओ रेवती श्राविका के यहां जो उसने अपने घर के लिये
औषधबनाया है उसे ले आओ।मेरे लिये बना है वहलाना नहीं। तब वहमहात्मा जाकर दवा ले आते हैसही हैन? लेकिन प्रभुतो शरीर से निरपेक्षही थेन?
. हमारे-तुम्हारे उपकार के लिये इस देह से ममता न उतरे या उतारने का प्रयत्न हम न करे तो अपनी क्या गति होगी? कहाँ अपने भगवान और कहां हमलोग? भगवान ने यह सब कुछ हमारे-तुम्हारे लिये सहन किया है। पूर्व के तीसरे भव में जीवमात्र के कल्याण की भावना करके आये हैं । शासन की स्थापना करनी है, इसके लिये केवलज्ञान प्राप्त करना है, इस हेतु मोह को मात देनी हैं। इसी से सब सहन करने का निर्णय लेकर बैठे हैं। हमलोग जानते हैं कि प्रभु कर्म की बलवत्ता होने से अनार्यदेश में भी गये हैं न? वहां की अनार्य प्रजा जितनी कदर्थना करेंगी उतनी आर्य प्रजा नहीं कर सकती इसीलिये न ? अपने सभी तीर्थंकर भगवंतों की जीवमात्र के उपकार की भावना और अंतिम भव की साधना किन शब्दों में वर्णन किया जाय? किसके साथ तुलना की जाय? - उस संगमदेव की मूल बात पर आये । उसने १५. चंडालों के द्वारा पक्षियों का पिंजरा प्रभु के अंगों पर लटकाया । ये पक्षी बाहर चोंच निकालकर प्रभु के शरीर को नोचने लगा और मांस का लौंदा गिराने लगा। फिर भी भगवान को अक्षुब्धभाव में देखकर प्रत्येक पल बढता कोपवान संगमने १७. प्रचंडकाल सदृश हवा फैलायी, उससे ध्यानाग्नि प्रदीप्त हुआ पर