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________________ - प्रभूवीर एवं उपसर्ग 47 वर्धमानकुमार का पाठशाला में अभ्यासार्थ गमन सौधर्मेन्द्र महाराज का ब्राह्मण वेशामें आगमन | जन्म समय से ही पिता प्रसेनजित राजवी को दुश्मन राजाओ से यश प्राप्त करानेवाली होने से जिसका यशोदा नाम रखा गया था इनके साथ आगे जाते प्रभु का पाणिग्रहण हुआ, तत्पश्चात् भी प्रभु का निर्लेप भाव का वर्णन कौन से शब्दोमें किया जाय ! . ऐसे माता-पिता के अरमानो के साथ प्रभुजी के २८ वर्ष पूर्ण होते माता-पिता परलोक सिधा गये । गर्भ में कि हुई प्रतिज्ञा की पूर्ति होते हि बडे भाई नन्दिवर्धनराजा के पास दिक्षा के लिए अनुमति प्रभुने माँगी। तब भाई ने कहा बंधो ! फिलहाल हि मातापिता का वियोग हुआ है। उस समय आपकी दिक्षा की बात घाव पर नमक जैसी लगती है। आपका दर्शन हमें अतिप्रिय है। आपका विरह हम बर्दास नहीं कर सकते. तब प्रभुने सबको सपरिवार शोकमुक्त होने का उपदेश दिया । संसार की विनश्वरता व स्वजन संबंधोकी क्षणभंगुरता समजाई । तब श्री नंदिवर्धन कहते है, 'भैया ! यह तो मैं भी समझता हूँलेकिन आपका विरहहमारे लिए दुःसहहै।' राजा सिद्धार्थ महाराज की राजगद्दी पर श्री वर्धमान कुमार को शुभमुहूर्त पर प्रतिष्ठित करने का सबजनों के प्रयत्न निष्फल रहेतब श्री नन्दिवर्धन का राज्याभिषेक हुआ और स्वजन वर्ग समेत राजा नन्दिवर्धनने अभी दीक्षा नहीं लेनेके लिए विनंती की। प्रभु पूछते है आप सब कभी दीक्षा की अनुमति दोंगे?
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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