________________
UNEBRES
सबने दो वर्ष दीखाया, ज्ञानसे लाभ-हानि का ज्ञाता प्रभुने यह बात का स्वीकार किया । प्रभु के गृहस्थवास से दो वर्ष व दान
तओ तद्दिणाओ आरब्भ परिचत्तसव्वसावज्जवावारो सीओदग परिवज्जणपरायणो फासुयाहारभोई दुक्करबंभचेरपलिपालणपरो परिमुक्कण्हाण-. विलेवणपमुह- सरीरसक्कारी फासुओदगेण कयकत्थ प्रायपक्खा लगाइ-कायव्वो जिणिदों ठिओ वरिसमेत्तं ॥
तहिंच
वर्धमानकुमार की दिक्षा हेतु नंदीवर्धन से अनुमति की मांग और नंदीवर्धन का विषाद ।
परिमुक्काभरणोऽविहु ण्हाणविलेवणविवज्जिओऽवि जिणो । जुगवुग्गयबारससूरतेयलच्छि
समुव्वहइ ॥१॥ सयणोवरोहणेहेण धरियगिहसरिसबज्झवेस्रोऽवि । लक्खिज्जइ जयनाहो संजमरासिव्व पच्चक्खो ॥२॥ सा कावि गिगयस्सवि जिणस्स मज्झत्थया पवित्थरिया । जा निग्गहियमणाणवि मुणीण चित्तं चमक्केइ ॥३॥
• महावीर चरियम्
महानुभावों ! प्रभु महाज्ञानी है। गर्भकाल की प्रतिज्ञा की जैसी अभी भी ज्ञान से लाभ-हानि देख रहे है। ताकी कालक्षेप कर रहे है। परन्तु उस दिन से प्रभुने सावद्यकार्यो का त्याग किया। सचित्त जल का भी परिहार कीया, अपने लिए अनिर्मित- आहारपानी का उपभोग करते रहे। दुष्कर ब्रह्मचर्य का पालन करते रहें। खान-विलपन से देह का शृंगार छोडकर हाथपाँव के प्रक्षालन में भी अचित जल का हि उपयोग करते रहकर, अल्प वस्त्रालंकारो से बहुलतया कायोत्सर्ग मुद्रा में रहने लगे इस तरह प्रभु ने एक वर्ष पूर्ण की।
48
प्रभूवीर एवं उपसर्ग