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छप्पन दिनकुमारियो द्वारा भव्य जन्म महोत्सव । को पवित्र माननी, यहसब किस बात का सूचन देते है ? निर्मलसम्यकत्त्वधारक देवगण का यहशाश्वतिक आचार है।
प्रातःकाल होते राजा भी अद्भुत जन्मोत्सव मनाते है। कुलमर्यादा का पालन व वर्धमान एसागुणनिष्पन्न नामकरण, यहसब आप जानते ही हो।
आर-पार की लडाईक्व भव
श्री तीर्थंकर परमात्मा का अंतिम भव माने कर्मके प्रतिपक्ष में आर-पार की लडाई का भव । प्रभु का बाल्यकाल, शालागमन, युवावस्था में पाणिग्रहण आदि सब कर्म को वह जो रीतसे मानते हैयह सब प्रवृत्ति करते है।
बाल्यकाल से कुतुहलवृत्ति से मुक्त निर्मल सम्यग्द्रष्टि, तीन-तीन ज्ञान को धारक व ज्ञानगर्भित वैराग्य के स्वामी प्रभु को पुद्गल भाव की कोई चेष्टा में अंश मात्र भी मझा नहीं थी। श्री
तीर्थंकरदेवो के लोकोत्तर जीवन की मेठपर्वत पर सौधर्मेन्द्र आदि ईन्द्रो द्वारा प्रभुका जन्माभिषेक महोत्सव । समकक्षता कहाँ भी नहीं है। 46
प्रभूवीर एवं उपसर्ग