________________
To प्रभूवीर एवं उपसर्ग
37 का उपभोगकर एक समय महल के अगले भाग से लगे मेघाडंबर को देखने पर वैसग्य पाते हैं । पुत्र को राजगद्दी पर बैठाकर दीक्षा स्वीकार करते हैं । एक करोडवर्ष तक निर्मल चारित्र पालन करके शुक्र नामक सातवें देवलोक में देव रूप में अवतार पाते हैं । इस प्रकार समकीत पाने से लेकर श्रीवीरविभु के चौबीस भवों की बात अति संक्षेप में हम सब ने देखी, अब पचीसवाँ नंदनराजऋषि के भव की रोचक बातें देखनी हैं।
विमलकुमार के भव में दीन मनुष्यों को अनुकंपादान, प्रियमित्र चक्रवर्ती, देवलोक में देव ।