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________________ मरीची एवं आज का समाज - बैठना, मरीची के शरीर में एकबार कोई रोग उत्पन्न हो गया, उठनाचलना-फिरना कुछ भी इनसे किया नहीं जाता। उस समय दूसरे महात्मा लोग इन्हें असंयति समझकर इनके लिये कुछ भी नहीं किया करते। इनके सामने देखते या बोलते तक भी नहीं । 'कोई साधु पानी न दे' ऐसा आपने कभी सुना है? आपने क्या शोचा था ? सभा-महात्माओं में अनुकम्पा भी नहीं हो ? पूज्यश्री- साधुपना क्या चीज है वह ख्याल में आ जाय तो इस प्रश्न का अवसर ही नहीं होता, प्रभुशासन समझ में आ जाये, विरति - अविरति समझ में आवें, साधुपना का स्वरूप समझ में आवे । साधु से क्या होता - क्या नहीं होता' है वह समझ में आ जाय तो काम हो जाता है। आज जिस प्रकार की प्रवृत्ति चल रही है उसे देखते ऐसा लगता है। प्रभुमार्ग की श्रद्धा रसातल में चल गयी हैं। जाने की साध्वाचार जानते ही नहीं इसीलिये सब चलता है । आज तो ऐसे बोलनेवाले भी है कि समाज का खाते हैं परन्तु समाज कें लिये क्या करते हैं ? साधु को समाज का बोझ भी माननेवाले लोग हैं। क्यो ? साधुता का ज्ञान नहीं है इसलिये। बाकी साधुता में रहे हुए साधु जो कर सकते हैं उसे कौन कर सकता ? महान शिक्षाशास्त्री व दिग्गज नेता आदि जो नहीं कर सकते उसे कोने में आत्मसाधना में लीन एक सच्चा साधु कर सकता है। इसी से साधु चलती-फिरती यूनिवर्सिटी ( विश्वविद्यालय ) कहा जाता है सो मालूम है ? मुझे तो यह पूछना है कि साधु के लिये क्या मानते हो ? मरीची तो रोगी हुआ, महात्माओं के व्यवहार से इनका दिल दुखी हुआ, इन्हें ऐसा भी लगा कि मेरे ही उपदेश से साधु बने ये लोग मुझसे अनजान जैसा व्यवहार करते हैं ? फिर क्षणमात्र में ही मरीची सजग हो जाते है। इन्हें अपनी स्थिति का ख्याल आ गया । साधुपना के पक्षधर थे । साधु असंयमी के साथ कैसा व्यवहार करता है उसे जानते थे । इसी से उन्हें लगा कि ये महात्मा तो अपनी काया से भी निरपेक्ष है मेरे जैसे असंयमी के लिये क्योंकर चिन्ता करे ? द्रव्य रोग हुआ था, उसका भी असर अपने शरीर-मन पर था लेकिन, प्रभुवचन के प्रति अविहड प्रेम था इसलिये क्षणमात्र में आये हुए दुर्विचार लम्बे समय तक नहीं टिका । सम्यक्त्व के प्रभाव से ये अन्दर से सजग थे । आज तो स्वयं का गुमान एवं शासन का अज्ञान समाज को किस दिशा में ले जा रहा है ? 24 प्रभूवीर एवं उपसर्ग
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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