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महाराज को आनंददायक लगे, उसमें आश्चर्य है ? हर्षोत्फुल्ल चक्रवर्ती मरीची के पास जाते है। प्रभु की बतायी हुई बात बताकर मरीची की प्रशंसा करते हुए तीन प्रदक्षिणा करते हुए नमस्कार करते है। इसके साथ ही स्पष्टतापूर्वक बताया कि 'नवी वंदु त्रिदंडीक वेश भक्ते नमुं वीर जिनेश' अर्थात् कि आप भविष्य में तीर्थंकर होनेवाले हो इसलिये वंदन करता हूँ आपके त्रिदंडिक वेष को नहीं।
इस स्पष्टता का उद्देश्य आप समझ गये होंगे ? समकीती आत्मा यत्रशिर झुकाते नहीं । चक्रवर्ती तो प्रणाम करके चले गए लेकिन मरीची 'अहो में उत्तमं कुलम्' इत्यादि बोलते-बोलते छत्र लेकर नाचने लगे, पांव पटककर अहंकारभाव व्यक्तकर कुलमद किया जिसके कारण नीच गोत्रकर्म बँधा, ये बात अपने यहाँ प्रसिद्ध है। जिसका अंश अंतिम भव में भी भोगने की अवस्था आयी । हँसते हुए बाँधे गये कर्म रोने पर भी छुटते नहीं है। जो कि इसके बाद भी
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राजकुमार कपिल को प्रतिबोध करते हुए मरीची ।
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प्रभूवीर एवं उपसर्ग