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प्रथम तिर्थंकर भगवान ऋषभदेव मरीची को दीक्षा दे रहे है।
कर्मराजा के समक्ष कोई योद्धाने जंग छेड़ दिया। इतने तप-जप व संयम के बीच अल्पकाल में ही ग्यारह अंगों के पाठी हो गये। सूत्र व अर्थ से ग्यारह अंगों का ज्ञान संपादन करके गीतार्थपना को प्राप्त किया। इसके साथ ही अद्भुत देशनालब्धिसंपन्न हुए । भूख और प्यास, शीत एवं ताप आदि के मध्य दीर्घकाल पर्यन्त निर्मल चारित्र का पालन किया । TOPPE- TEAT
प्रभूवीर एवं उपसर्ग
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