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________________ 15 प्रभूवीर एवं उपसर्ग मोहरूपी अजगर का धिराव • माघ मास की कड़ाके की ठंढी इनके रोम को हिला न सकी, ग्रीष्मकाल की अग्निवृष्टिसमान गरम हवा इन्हें अशान्त न बना सकी, लेकिन एक बार जाने की काल की नजर इन पर लग गयी । ग्रीष्मकालीन ताप की तपन इस हद तक तपने लगी कि मन-वचन काया से महासंयमी मरीची का तन-बदन ही नही बल्कि मन भी चंचल हो गया।महानुभावो, पूर्वो के पूर्व पर्यंत काया की माया छोड़कर तपोमय संयम की साधना करते जिन्होंने कभी शरीर का परवाह नहीं किया, ऐसे मरीची को भी मोहरू पी अजगर ने अपने घिराव में जकड़ लिया। फिर काच की काया को कहीं आँच न लगे उसके लिये सतत सोते-जागते चिन्ता करनेवाले अपने लोगों की बात ही क्या करनी ? एक समय गरमी के कारण विचार.में पड़ गया । इसे कैसे सहन किया जाय? एक ओर संयम पर राग है, दूसरी ओर कर्म का जोरदार पराक्रम है, अर्थात् संयम खूब भाता है और कर्मराजा ने उनके मनोबल पर प्रहार किया है। इसके कारण मन निर्बल हुआ है। इसके बावजूद भी साधुवेश को दूषित करने की इच्छा नहीं है। वेश की मर्यादा को जिस प्रकार जानता है उस प्रकार पालन करना चाहिये, .ऐसा निर्णय है । इस परिस्थिति में इनकी आंतरिक मनोस्थिति क्या होगी? निर्मल सम्यग्दर्शन और चारित्रमोहनीय का प्रहार ये दोनो के बीच में उनकी संवेदना को वही जान सकते न ? साधुवेश के प्रति उनका आदर इतना अद्भुत था कि ऐसे विचार आते ही उन्हें ऐसा लगने लगा कि अब मैं चारित्र के लायक • रहा नहीं।' एक ही बात इन्ही के मनमें रही मेरे कारण धर्म का यह निर्मल मार्ग मलीन न होना चाहिये।धर्म का यहमार्ग अनेकों का तारक है।, मार्ग मलीन हो जायेगा तो हजारों को तैरने का साधन टूट जायेगा । ये भी मुझे अच्छा नहीं लगता और मार्गभेद होगा वो भी रुचता नहीं है। कारण कि सम्यक्त्व निर्मल है। चारित्र मोहनीय के उदय से देह की सुश्रूषा की इच्छा होती है, यह भी खटकता है, यह सम्यक्त्व का प्रभाव है, इसी से अपने दोषों को प्रकट करनेवाला वेशधारण के लिये इन्होंने विचार किया है। कर्मराजा और धर्मराजा भगवान श्रीमहावीर परमात्मा के चरित्र की बातें करते हुए ऐसा लगता है कि प्रत्येक तीर्थंकरदेवों का और महापुरुषों का जीवनचरित्र बारंबार पढ़ने
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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