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________________ सम्यग्दृष्टि आत्माओंका सर्वस्व गुरु के चरण में होता है ? शासन के लिये जब जो आवश्यकता होती है उसे सौंपने के लिये तैयार होते हैं न ? आराधक और भक्त गिने जाते महानुभावों को यहशोचने योग्य है । हाथ पकड़ने वाले गुरु महात्माओं को नयसार पथ दिखाता है तथा जबतक उनकी पीठ दिखाई देती है तबतक देखा ही करता है। उसका अन्तर विचार कर रहा होगा कि मुझे धर्मदान करनेवाले तथा भवसागर से पार उतारनेवाले मेरे गुरु जा रहे है । नयसार को गुरु भा गये थे । क्या भाया होगा ? गुरु का शरीर ? उनका स्वभाव ? वह नही शरीर सौष्ठव और नही अच्छे स्वभाव के कारण आकर्षित हुआ था। लेकिन इन्हें लगा कि भवजंगल में भटक रहे मुझ जैसे राही का हाथ पकड़नेवाले मार्गदर्शक ये मेरे गुरु है। देवगुरु के प्रति ऐसी प्रतीति यह सम्यक्त्व का परिपाक है। रहे परन्तु रमे नहीं नयसार अपना काम पूरा करके अपने नगरं में वापस आया, बडे राजा का काम पूर्ण करके इन्हें संतुष्ट किया। अब नयसार कों अर्थ- - काम पर से दृष्टि हट गयी है। अरे ! उसके आचरण में बदलाव आ गया। संसार की चाहत थी उसके बदले संसार को पीठ दिखाने लगा । आपने कभी विचार किया है कि मेरी नजर संसार की तरफ है या पीठ ? भगवान कहते हैं कि मेरे श्रावकश्राविका संसारी है, संसार में रहते हैं, संसार में जो रहे उसे ही श्रावक-श्राविका कहा जाता है, परन्तु वे संसार में रमण करते नहीं, आशय यह है कि वे संसार में रहते तो हैं लेकिन उसमें तल्लीन नहीं होते । नयसार नमस्कारमंत्र की आराधना, प्रभुभक्ति आदि सम्यक्त्व की शुद्धिजन्य कार्यों में ओत-प्रोत हो जाता है । इसके बाद अन्त में शुभभावना में देह छोड़कर प्रथम- सौधर्मदेवलोक में देव स्वरूप में उत्पन्न होता है । निर्मल सम्यग्दर्शन के प्रभाव से निर्लेप भाव में भोग की ऋद्धि में शाश्वततीर्थों की यात्रा, तीर्थंकरप्रभु की वाणी का श्रवण आदि करते हुए समय व्यतीत करने लगता है। समकित को शुद्ध बनाते रहता है। देवलोक की पुष्कल ऋद्धि और प्रचुर भोगसामग्री होते हुए भी उससे अलिप्त रहता है । यहाँ भी कहा जा सकता है कि रहते हैं पर रमते नहीं । तात्पर्य यह है कि सांसारिक भोगविलासादि में लिप्त नहीं रहते । 1 12 प्रभूवीर एवं उपसर्ग
SR No.002241
Book TitlePrabhu Veer evam Upsarga
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShreyansprabhsuri
PublisherSmruti Mandir Prakashan
Publication Year2008
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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