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हो तो भयंकर काले सर्प की भाँति वह त्याज्य है । अतः हे पुत्र, विपुल गुणों का उद्भव स्थान विनयगुण का उपार्जन करने में अपनी बुद्धि से विचारकर रमण करते रहना ।' गुणनिधिनयसार को माता की शिक्षा इस प्रकार प्राप्त होती । इसलिये बाल्यकाल से ही विवेकयुक्त विकास हुआ।
योग्य अवसर पर एक नगर के राजा बने । पुण्यबल से प्रजापालक बनकर प्रजावत्सल रूप में जीकर प्रजा का प्रेम पाये। इसी प्रकार अपने से अपने उपरी राजा के भी कृपापात्र बनें। बड़े राजा का चार हाथ इनके ऊपर था । एक समय बड़े राजा को महल के लिये कीमती लकडियों की आवश्यकता थी । विश्वासपात्र के रूप में नयसार को सुपरवाइजर के पद पर नियुक्तकर भेजा।
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भोजन लेने जाते ही नयसार अतिथी की खोज में दूर द्रष्टि रखता है। 6 F & fig
प्रभूवीर एवं उपसर्ग
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