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प्रभूवीर एवं उपसर्ग घटना अत्यन्त ही प्रेरणाप्रद है। जिनका भावि कल्याणप्रद होते हैं, उनके सभी तरह के संयोग सहज ही अनुकूल हो जाते हैं। संस्कार का आधान बाल्यकाल से ही भलीभाँति विकसित होने लगता है। नयसार की माता उसे बाल्यकाल से ही कहती थी कि-बेटा विवेक सभी गुणों का मूल है। विवेक बिना सभी गुण धूल है। प्रभु के चरित्र में उनके लिये अद्भुत शब्द बताये गये हैं।
जो य तहाविहसाहुसेवाविरहेऽवि अलसो अकज्जपवित्तीए, परम्मुहो परपीडाए, सयण्हो गुणगणोवज्जणाए अचक्खू परछिद्दपलोयणआए । एवंविहगुणोयसोसविसेस गुणुक्करिससाहणनिमित्तं भणिओ गुरुअणेणजहा
धणरिद्धी दूरं वड्डियावि दुव्विणयपवणपडिहणिया । एक्कपएच्चिय पुत्तय ! पणस्सए दीवयसिहव्व ॥१॥ णीहारहारधवलोवि वच्छ ! सेसो गुणाण संघाओ । विणएण विणा वयणं व नयणरहियं न सोहेइ ॥२॥ अच्चंतपिओऽवि परोवयारकारीवि भुयणपयडोऽवि । वज्जिज्जइ पुरिसो विणयवज्जिओ गुरुभुयंगोव्व ॥३॥ इय दुब्विणयत्तणदोसनिवहमवलोऊण बुद्धीए । पुत्त ! रमेज्जसु विणए समत्थकल्लाणकुलभवणे ॥४॥
- महावीर चरियम् । भावार्थ - आर्यसंस्कारवासित माता-पिता के संतान रूप में नयसार विशिष्ट प्रकार के सर्वसंगत्यागी महात्माओं का सम्पर्क नहीं पा सका था, फिर भी
• अकार्य प्रवृत्ति में आलसी था। ..परपीडा कार्य से विमुख था। • गुणसमूहके उपार्जन में जागृत था और • दूसरों का छिद्र ( दोष) देखने में अन्धथा।
इस प्रकार के अपने पुत्र में विशेष गुणों का आविर्भाव हो इसके लिये माता-पितादि श्रेष्ठलोग कहते थे
पुत्र, अविनयरूप पवन विपुल धन ऋद्धि को दीपशिखा की तरह क्षण .. में नष्ट कर देता है। एक से बढकर एक सभी गुण, विनय बिना शोभायमान नहीं
होते है। जैसे कि नेत्ररहित मुख शोभा नहीं पाता। इसलिये हे वत्स, अत्यंत प्रिय परोपकारी और विश्वप्रसिद्ध ऐसे भी लोग संसार में उद्धत होते हैं, विनयशील न