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________________ ८४ बौद्ध और जैनदर्शन के विविध आयाम अधःपतन के कारणरूप बनती हैं। आत्मा को कलुषित करता है, वह कषाय है। चार कषायमें से माया और लोभ रागात्मक है। क्रोध और अहंकार द्वेषात्मक है। महावीर स्वामीने कहा है - छिंदाहि दोसं विणयेज्ज राग. एवं सही होहिसि संपराये । - सुख होने के लिये राग को दूर करना और द्वेषका छेदन करना। रागद्वेषादि भावनाओं का न होना ही अहिंसा है । जैन दर्शन में पांच महाव्रतों में अहिंसा को सर्व प्रथम स्थान दिया गया है - और अहिंसा की परिभाषा श्री अमृतचंद्राचार्यने इस तरह दी है : अप्रादुर्भावः खलु रागादीनाम भवत्सहिंसेति । तेषामेवोत्पति हिंसेति जिनागमस्य संक्षेपः ॥ . . रागद्वेषादि भावनाओं का न होना ही अहिंसा है। व्यक्ति के जीवन में और समाष्टिमें शांति की स्थापना के लिये अहिंसा ही सब से बडा प्रेरक बल है। इस लिये मोक्षमार्ग के संदर्भ में जैन आधार. शास्त्र की नींव रागद्वेषादि कषायों का क्षयोपक्षम ही है। रागद्वेषादि कषायों को निर्मूल करना ही उसका निर्दिष्ट ध्येय है। क्रोध, मोह, माया, मान, लोभ, अहंकार आदि अप्रशस्त भावनाओं की सीधी असर शरीर के कोषों पर होती है और शरीर कैसे व्याधिग्रस्त बनता है, उसका गहन अभ्यास भी यहां किया गया है । शरीर और मनकी तंदुरस्ती के लिये मन का शांत-स्वस्थ और प्रसन्न रहना अनिवार्य है। इस तथ्य का आधुनिक विज्ञान ने भी स्वीकार किया है । जिसका निदर्शन हमें आगम और आगमेतर साहित्य में भी मिलता है । ___ इन्द्रियों के विषय नियत हैं - वे अपने-अपने नियत विषयों को ग्रहण करती हैं। आंखें देख सकती हैं, सुन नहीं सकतीं । कान सुन सकते हैं, देख नहीं सकते । मन भी इन्द्रिय है, किन्तु इसका विषय नियत नहीं है । वह पांचों इन्द्रियो का प्रवर्तक है। इसीलिए यह शक्तिशाली इन्द्रिय है। जैन आगमों में स्थान-स्थान पर मनोविजय पर अधिक बल दिया गया है । वह इसीलिए कि एक मन को जीत लेने पर पांचों इन्द्रियों पर विजय प्राप्त की जा सकती है। ब्राह्मण के वेश में आए हुए इन्द्र ने नमि राजर्षि से कहा - 'आप अपने शत्रुओं को जीतकर प्रवजित हों तो अच्छा रहेगा।' नमि ने कहा - 'बाह्य शत्रुओं को जीतने से क्या ? जो एक मन को जीत लेता है, वह पांचों इन्द्रियों को जीत लेता है। जो इन्द्रियों को जीत लेता है, वह समुचे विश्व पर विजय पा लेता है।' शंकराचार्य से पूछा गया - 'विजितं जगत् केन' - संसार को जीतनेवाला कौन है ? उन्होंने कहा - 'मनो हि येन' जिसने मन को जीत लिया, उसने सारे संसार को जीत लिया ।
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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