SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ... प्राकृत भाषासाहित्य में मनोवैज्ञानिक निरूपण ... प्राकृत भाषासाहित्य में दर्शन - सिद्धांत, आधार और कथा-काव्य तथा अन्य प्रकीर्ण विषयों का आलेखन हुआ है। संस्कृति, समाज, इतिहास, अर्थशास्त्र, नीतिशास्त्र और अन्य शास्त्र तथा विज्ञानों के साथ मनोविज्ञान के साथ भी उसका अतूट नाता रहा है। प्राकृत साहित्य का प्रायः आगम और आगमेतर परम्परामें हम विभाजन कर सकते हैं। आगमोंमें जैन दर्शन के सिद्धांत और आचार परंपरा का जिनेन्द्र कथित निरूपण है । आगमेतर साहित्य में काव्य-कथा तथा अन्य प्रकीर्ण विषयों का समावेश हो सकता है। - आगम साहित्य में निरूपित-विषय-विचार का मनोविज्ञान के साथ किस तरह से संबंध जुड़ा हुआ है । इस बारे में हम प्रथम सोचेंगे। . जैसे हम जानते हैं कि आगम में महावीर स्वामी प्रबोधित जैनदर्शन के सिद्धांत और आचार का वर्णन है । प्रश्न, यह हो सकता है कि मनोविज्ञान को भला धर्म-दर्शन से क्या तालूक ? मनः एवं मनुष्याणां कारणं बंध-मोक्षयो : मैत्राणि-योगसूत्र की इस पंक्ति में निरूपित तथ्य का समग्रतया - या अंशतः प्रत्येक दर्शनपरम्पराने स्वीकार किया है। मन की सब गति-विधि की नींव पर ही जैनदर्शन भी आधारित है। सब दर्शनपरंपराओं का प्रधान उद्देश मनुष्य का आध्यात्मिक उत्कर्ष है । और मनुष्य या मानव यह है, जो मन से प्रेरित होता है । इस लिये अन्य दर्शन - परंपराओं की तरह जैनदर्शन में भी मन की सूक्ष्माति सूक्ष्म गति - विधि के बारे में गहन दृष्टि
SR No.002239
Book TitleBauddh aur Jain Darshan ke Vividh Aayam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNiranjana Vora
PublisherNiranjana Vora
Publication Year2010
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy